Monday 4 February 2013

पापा के जूनियर से चुदी


मैं गर्मी की छुट्टियों में रतलाम आ गई थी अपने पापा के पास। घर में छुट्टियों में बहुत पाबन्दी रहती थी ना। पापा तो ऑफ़िस चले जाते थे सो आराम से घर पर आराम करती रहती थी। घर में अकेले रहने में बड़ा आनन्द आता है। एक तो खाली दिमाग शैतान का घर होता है, दूसरे यह कि आपको कुछ भी करने से कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता है। बिस्तर पर लेटे लेटे एक से एक मनभावन ख्याल आते रहते हैं। मन दूर कहीं सपनों में खो जाता है ... 


कई ऐसे लड़कों की तस्वीरें मन में उभर आती हैं जिनके साथ मैं वासना का खेल अन्तरंग अवस्था में खेला करती थी। मुझे लगता था कि अब भी मेरे साथ वो मुझसे खेल रहे हैं, मेरी नर्म-नर्म छातियों में अपना मुख लगा कर मेर दूध पीने की कोशिश कर रहे हैं, मेरे गुप्तांगों से खेल रहे हैं। 


इसी ताने-बाने में उलझ कर मैं अपनी दोनों टांगें ऊपर उठा लेती हूँ और अपनी नर्म और गर्म हो चुकी फ़ुद्दी को सहलाने लगती हूँ। शेविंग के कारण मेरी झांट के बाल भी अब कड़े और कांटो की तरह निकल आते हैं, पर ये हाथ से सहलाने पर बहुत गुदगुदी करते हैं।जितना भी मैं अधिक सहलाती, मेरी उत्तेजना और भी बढ़ती जाती, मेरी चूत गीली होने लगती थी, चिकनाई उभर आती। उसी चिकनाई का सहारा लेकर मैं अपनी गाण्ड का फ़ूल भी चिकना कर के उसे धीरे धीरे रगड़ती।


मेरी पाठक सहेलियो, आपने भी कभी ऐसा करके देखा है? जरूर किया होगा, ऐसा करने से जो मजा आता है वो अविस्मरणीय है। इस चिकनाहट का सहारा लेकर आप अपने इस छेद में अंगुली भी डाल सकती हैं। अब ऐसे माहौल में कोई आ जाये तो ... आह ! क्या कहने ... मैं तो बिना चुदे नहीं रह सकती ... जवानी का रस निकाले बिन मजा ही नहीं आयेगा। मजा तो तब और भी ज्यादा हो जाता है जब चोदने वाला आपका ही मन पसन्द साथी हो ... कड़क, मोटे लण्ड वाला ... है ना !


घर में मैं अकसर एक हल्का रंग बिरंगा पजामा, और टाईट बनियान पहने रहती हूँ। अन्दर तो कुछ पहनने का सवाल ही नहीं है। मेरी इसी अवस्था में एक दिन पापा का एक जूनियर घर पर आ गया। मैं उसे पहचान गई !


ओह ये तो रवि है ...पर क्या करूँ ? यह तो साला तो मुझसे बात ही नहीं करता है, बात करो तो पसीना पसीना हो जाता है।


पर वो है बहुत सुन्दर, मस्त सा लड़का है, मुझे जाने क्यूँ उसमें बहुत आकर्षण नजर आता है।मैंने उसे प्यार से बैठक में बैठाया।


"मुझे वर्मा जी से मिलना है, अभी तक वो ऑफ़िस नहीं पहुँचे हैं !" वो कुछ सकुचा कर बोला।उसकी नजर तो मेरी तरफ़ उठ ही नहीं रही थी।


"हां जी, वो देरी से निकले हैं, फिर उन्हें रास्ते में काम भी है, पहुँचते ही होंगे, चाय तो ले लेंगे आप।" मैंने उसकी हिचक दूर करने में उसकी सहायता की।


वो ना नुकुर करता रहा, पर मैंने उसे जिद करके बैठा ही लिया। किचन में से रवि साफ़ नजर आ रहा था। मेरा पजामा मेरे चूतड़ों में घुसा हुआ उनका पूरा आकार दिखा रहा था। झुकने पर मेरे चूतड़ों की गोलाईयाँ भी अपनी गहराई के साथ उसे नजर आ रही होंगी।


दूर से ही मैंने भांप लिया कि उसकी नजरें मेरे शरीर का ही मुआयना कर रही थी। उसकी दिलचस्पी मुझमें हो चली थी। फिर तो मैंने उससे पन्द्रह मिनट में ही दोस्ती कर ली। 


अब उसकी झिझक खुल चुकी थी। उसका कहना था कि वो लड़कियों से बात करने में शरमाता है। मैंने उसे फिर समय काटने के लिहाज से उसके पास बैठ कर अपना एलबम दिखाया। उसे मेरा सामिप्य बहुत अच्छा लग रहा था। फिर मैंने उसकी मनःस्थिति का अन्दाजा लगा कर उसे जाने को कह दिया। उसका मन बिल्कुल भी जाने का नहीं हो रहा था।


"रवि जी, आप आते रहियेगा, आपका व्यवहार मुझे बहुत अच्छा लगा।" मैंने उसकी ओर अपना झुकाव दर्शाया।


"जी जरूर, समय निकाल कर जरूर आऊंगा ..." वो मुझे बार बार मुड़ कर देखता रहा। मैं उसे हाथ हिलाती रही।


वो दूसरे दिन पापा के ऑफ़िस जाते ही आ गया।"वर्मा जी हैं क्या ?""जी नहीं, मिस वर्मा है ... मिलना हो तो और चाय पीना हो तो मिस वर्मा हाजिर है।" मैंने उसे हंस कर कहा।


वो हंसता हुआ अन्दर आ गया। बातों बातों में उसने मुझे बता दिया कि उसे पता था कि मेरे पापा को उसने जाते हुए देख लिया था और वो मुझसे मिलने ही आया था।


"तो रवि जी, तो फिर रोज ऐसे ही पापा के जाने के बाद आ जाया करो, खूब बातें करेंगे।" मैंने उसे और बढ़ावा दिया।


आज मैंने सिर्फ़ कुर्ता पहन रखा था, सलवार नहीं पहनी थी। सो मेरे कुर्ते में से मेरी चूचियाँ हिल हिल कर उसे बेहाल किये दे रही थी। मैं फिर से आज एक मेगजीन लेकर उसकी बगल में बैठ गई और उसे दिखाने लगी। पहले तो वो मेगजीन देखता रहा, मेगजीन नहीं जी, कुर्ते में से मेरे बोबे देख रहा था।


कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना ... और नतीजा ! उसका पैन्ट में से उभरता हुआ लण्ड ...। 

मैं समझ गई कि अब वो मेरा समीप्य पा कर उत्तेजित हो रहा है। मैंने अपना चेहरा ज्योंही उठाया उसका चेहरा मेरे बिल्कुल नजदीक था। मेरी तो जैसे सांसें ही रुक गई। उसकी आँखें मेरी आँखों में कुछ ढूंढने लगी। मेरे हाथों से वो मेगजीन छूट गई, हाथ थरथराने लगे। मेरे चेहरे पर पसीना आ गया। वो मुझे एकटक देखता हुआ, मेरे और पास आ गया कि उसकी गरम साँसें मुझसे टकराने लगी।


"र...र... रवि ... " मैं सच में इस हमले से बेचैन सी हो गई थी।"हां नेहा ... तुम कितनी सुन्दर हो..." वह अपने हाथों से मेरे हाथ को पकड़ता हुआ बोला।'रवि, ऐसा मत बोलो ..." मैं उसकी आँखों में देखने लगी।


"नेहाऽऽऽऽ ..." उसके होंठ मेरे होंठों से छूने लगे। मेरे तन में जैसे बिजलियाँ तड़क उठी। तभी उसने अपने अधर मेरे अधरों से टकरा दिये और उन्हें चूसने लगा। मुझे भी दिल में बहुत सुकून मिला। मैं अपने आप को उसके हवाले करने की कोशिश करने लगी। उसने भी मौका देखा और मुझे बड़ी मधुरता से चूमने चाटने लगा। मेरा कुर्ता नीचे से ऊँचा हो गया। मेरी चिकनी मांसल जांघें उसे पिघलाने लगी। उसका लण्ड बहुत ही सख्त हो चुका था। लगता था कि पैन्ट फ़ाड़ कर बाहर आ जायेगा। मैंने भी उसे अपनी बाहों में समेट लिया और अपने कठोर स्तन उसके शरीर में दबा कर रगड़ने लगी। मेरे उत्तेजित स्तन के चुचूक कड़े होकर उसकी छाती में जैसे कील की तरह गड़ने लगे थे।


उसके हाथ मेरी पीठ को दबाने और मसलने लगे थे। मुझे उठा कर वो अपने लण्ड पर बैठाने की कोशिश कर रहा था। तब मैंने उसकी तड़प को और बढ़ा दिया। मैंने अपना हाथ उसके सख्त लण्ड पर रख दिया और धीरे धीरे उसे दबाने लगी। मुझे लण्ड दबाते देख कर उसने मेरी छाती पर हाथ डाल दिया और मेरे कठोर उरोजों को दबाने लगा। मेरी मन की कली खिल उठी। मैं अपना आपा खोने लगी। मैंने जान करके अपने कुर्ते को और ऊपर कर लिया।


'रवि, बस अब नहीं ... मैं मर जाऊंगी !" मेरी सांस धौंकनी के समान चल रही थी। मैं उसके चेहरे पर आते जाते भावों को देखने लगी। वो बहुत ही बेताब हो रहा था।


"और मैं ! मेरा तो बुरा हाल हो रहा है, अब क्या करूँ ?" वो पसीने में नहा चुका था, उसके दिल की धड़कन मेरे कानों तक सुनाई दे रही थी।


"कुछ नहीं, बस अब तुम जाओ !" मैंने उसे और अधीर करते हुये धकेला।"नेहा ! ऐसा मत कहो ... तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगा !" वो मुझसे और लिपटने लगा।


"ओह ! मरना ही है तो यहाँ नहीं, अन्दर बिस्तर पर चलो !" अब मुझे पता था कि मेरी लाईन साफ़ है। अब तो बस चुदना ही है। उसे भी कहाँ अब चैन था। उसने तो मुझे जल्दी से अपनी बाहों में उठा लिया और मेरा चेहरा चूमता हुआ बिस्तर पर ले चला। उसने मेरा कुर्ता खींच कर उतार दिया और मुझे पूरी नंगी कर दिया। मर्द के सामने नंगी होकर मुझे एक आलौकिक आनन्द सा आने लगा। 


फिर उसने अपने कपड़े भी जल्दी से उतार दिये और नंगा हो गया। बहुत महीनों के बाद मैं चुदने वाली थी और लण्ड भी बहुत दिनों के बाद देखा था इसलिये चुपचाप मैं उसे निहारने लगी। एक मर्द का सुन्दर सीधा सख्त लण्ड, मेरे दिल को घायल कर रहा था। बस बेचैनी चुदने की थी। वो बिस्तर पर जाकर सीधा लेट गया, उसका लण्ड हवा में सीधा तन्ना कर लहरा रहा था।


"आ जाओ नेहा, पहला मौका तुम्हारा ! अब तुम जो चाहे वो करो।" उसने मुझे ऊपर आ कर चोदने का न्यौता दिया।


मुझे तो एक बार शरम सी आ गई। कैसे तो मैं उसके ऊपर चढूंगी ? फिर कैसे अपने शरीर को उसके ऊपर खोल कर लण्ड लूंगी ! मुझे लगा कि यह बहुत अधिक बेशर्मी हो जायेगी। सारा शरीर, यानि कि मैं पूरी की पूरी ही अपने जिस्म को ...


"रवि, मुझे शरम आती है, तुम ही कुछ करो ना !" मैंने शरमाते हुये कहा।


उसने मेरी एक ना सुनी और मेरी बांह पकड़कर मुझे प्यार से अपनी ओर खींचने लगा। मैं शर्माती सी अपने दोनों पांव खोल कर उसके लण्ड पर बैठने लगी। वो मेरे पूरे नंगे शरीर को बेशर्मी से देखने लगा। मैंने उसकी आँखों पर अपना कोमल हाथ रख दिया।


"मत देखो ऐसे ... मैं तो मर जाऊंगी !' मेरे शरम से बोझिल आंखो को देख कर वो बहुत ही उत्तेजित होने लगा।


मैंने उसके ऊपर बैठ कर लण्ड पर अपनी चूत रख दी। उसका लाल सुपाड़ा मेरी गीली चूत पर आ टिका। चूत की पतली सी पंखुड़ियों को खोल कर उसका लण्ड थोड़ा सा अन्दर भी चला गया था। जवान चूत थी, कड़क लण्ड था, दोनों का मिलन हो रहा था। दोनों ने एक दूसरे का चुम्मा लिया, और वो चूत की चिकनाई से सरकता हुआ अन्दर की ओर बढ़ चला। 


मेरे तन में एक मीठी सी ज्वाला जल उठी। तभी रवि का हाथ मेरी चूचियों पर आ चिपका। मैं अपनी आँखें बंद करके उसके ऊपर लेट गई। उसने भी नीचे से जोर लगाया और लण्ड को जोर मार कर ठीक से जड़ से टकरा दिया। गुदगुदी भरी मिठास के कारण मैं उससे चिपकने लगी।"नेहा, अब कुछ करो तो ... देखो, बहुत मजा आयेगा !" उसकी उतावला स्वर मुझे भी तड़पा रहा था।


"नहीं जी, मुझे तो बहुत शरम आयेगी।" मैंने अपनी सादगी उसे दिखाई।'सुनो, थोड़ा सा ऊपर उठा कर फिर से पटको।" उसने अपनी उत्तेजित आवाज में कहा।"रवि, प्लीज ... मैंने यह कभी किया नहीं है, बताओ तो कैसे ?" मैंने उसे और तड़पाते हुये कहा।


"बस, अपनी चूत को अन्दर बाहर करो।" उसने मेरी चूतड़ों को सहला कर कहा।"धत्त, ... ऐसे क्या ?" मैंने जानकर शराफ़त का नाटक किया।


"अरे ऐसे नहीं, देखो ऐसे..." उसने नीचे से थोड़ा सा करके बताया। मुझे मन ही मन में हंसी आई, ये लड़के भी कितने भोले होते है। मैंने उसी स्टाईल में एक दो धक्के दे दिये तो वो चीख सा उठा।


"आह, नेहा, बस ऐसे ही, जरा जोर से !" वो मारे आनन्द के तड़प सा उठा।"आह ! मुझे भी मजा आया, कैसा कैसा लग रहा है ना?" मैंने भी उसे अपनी उत्तेजना बताई।


अब मैं मन ही मन खुश होती हुई चुदाई की क्रिया में लीन हो गई। बहुत दिनों बाद चुदने से बहुत आनन्द आ रहा था। उसका लण्ड भी जानदार था। मैंने भी धीरे धीरे अपने तरीके से में चूत को घुमा घुमा कर चुदना आरम्भ कर दिया था। वो बार बार अपनी कमर को उछाल कर अपनी उत्सुकता दर्शा रहा था, सिसकारियाँ भर रहा था। मैं भी अपनी प्यास बुझाने में लगी थी। मेरे शरीर में गुदगुदी भरी मीठी मीठी लहरें चल रही थी, एक लय में होकर हमारे अंगों का संचालन हो रहा था। अब मैं भी हल्की चीखों के साथ उसको अपनी खुशी दर्शा रही थी।


अब रवि ने अपने से चिपकाये हुये धीरे से पल्टी मारी और मेरे ऊपर आ गया। मुझे लगा कि अब होगी जबरदस्त चुदाई। मेरे ऊपर सवार होकर सच में उसने अपना शॉट जोर से कस कर मारा कि मेरी तो जान ही निकल गई। वो मदहोशी के आलम में मुझे जोर जोर से चोदने लगा। मेरा तन जैसे हवा में उड़ने लगा। मैं आनन्द से सराबोर, दूसरी दुनिया में आनन्द से तड़पने लगी। फिर मुझे लगा कि मेरा तन मेरा साथ छोड़ रहा है। अत्यन्त तीव्र मादक भरी कसक ने मेर तन तोड़ दिया। ... जैसे एक नदी के उग्र बहाव में शान्ति सी आ गई। मैं झड़ने लगी थी ... बहुत अधिक वासना के कारण मैं अपने आप को रोक नहीं पाई।


रवि तो आँखें बंद करके मस्ती में चोदता ही चला गया। मुझे में फिर से उत्तेजना भरने लगी। इस बार मैं उसका लण्ड दोनों पांव खोल कर चूत उछाल उछाल कर ले रही थी। मेरी चूत को वो कस कर पीट रहा था। अरे ! मां मेरी, वो तो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मुझे तो लगा कि मैं तो फिर से झड़ने वाली हूँ। तभी उसके मुख से एक धीमी हुंकार सी निकली और उसने अपना लण्ड मेरी चूत में कस कर दबा दिया। ओह ! जैसे ही उसने चूत में लण्ड दबाया, तो जैसे मेरी जान ही निकल गई, मैं दूसरी बार झड़ने लगी। 


तभी उसने अपना मोटा सा लण्ड मेरी चूत में से बाहर निकाल लिया और उसके लण्ड ने एक भरपूर पिचकारी मार दी। उसका वीर्य मेरे पेट और छाती तक उछल कर आ गया। फिर वो मेरे उपर लेट कर अपना पूरा वीर्य लण्ड को मेरे नाजुक पेट पर दबा दबा कर निकालने लगा। मैं प्यार से रवि को निहारने लगी, उसके बालों पर हाथ फ़ेरने लगी। इस हालत में भी वो कभी कभी मेरे अधरों को चूम लेता था।


"नेहा, तुम तो बला की चीज़ हो, देखो मेरा क्या हाल कर दिया!" उसने मेरी तारीफ़ के पुल बांधना शुरु कर दिया।


"ओह रवि, मुझे तो आज पहली बार कोई तुम जैसा लड़का है, मुझे नहीं पता था कि इसमें इतना मजा आता है !" मैंने भी उसे अपनी मासूमियत दर्शाई।


"नेहा जी, एक विनती है, पीछे से करवाओगी क्या ? वहाँ पर तो अलग तरह का मजा आता है।" किसी अनुभवी चुदक्कड़ की तरह बोला वो।


"सच? पीछे से करोगे? ... वहां से भी करते है क्या ?" मैंने उसे आश्चर्य से देखा।"अजी आप आज्ञा तो दें !" उसने बड़ी स्टाईल से कहा जैसे दुनिया में उससे बड़ा कोई अनुभवी ही ना हो।


"मजा तो आना है ना, तो फिर क्या पूछना ? चलो करते हैं।" मैं भी अपने आपको मासूम जता कर तैयार हो गई। मन में तो लड्डू फ़ूट रहे थे कि यह आप ही मान गया गाण्ड चोदने को, वरना ना जाने कितने और बहाने करने पड़ते गाण्ड चुदवाने के लिये।


उसने कुछ ही देर में मुझे घोड़ी बना कर गाण्ड मारनी शुरू कर दी। मुझे अब क्या चाहिये था भला ? मेरे तो आगे पीछे सभी कुछ उससे चुदवाने की इच्छा थी, सो मुझे तो बहुत ही आनन्द आने लगा था। उसने मेरी गाण्ड तबियत से मारी। हां ! उसे देसी घी लगा कर चोदने में मजा आता था। सो बस किचन से देसी घी लाना पड़ा था। 


पहले तो उसने देसी घी लगा कर मेरी गाण्ड को खूब चाट चाट कर मुझे मस्त कर दिया, शायद काफ़ी सारा घी तो वो मेरी गाण्ड में लगा कर ही चाट गया था। फिर गाण्ड चुदवाने में मेरी तबियत हरी हो गई। बहुत कम चुदती थी ना मेरी गाण्ड ! पर जब चुदती थी तो बस मारने वाले मेरी गाण्ड का बाजा ही बजा देते थे। अन्त में उसके झड़ने से पहले मैं तो बहुत उत्तेजित हो गई थी सो एक बार उससे और चुदवा लिया था।


इस घटना के बाद तो अब रोज ही पापा के ऑफ़िस जाने के बाद आ जाया करता था और मुझे चोद जाया करता था। भेद खुलने के डर से अब मैंने उसको सप्ताह में एक या दो बार आने को कह दिया था। उसके साथ मेरी पूरी छुट्टियों में खूब जमी। मैंने उससे खूब चुदाया और खूब मस्ती की। कॉलेज के खुलने का समय पास आ गया था और मुझे वापस इन्दौर भी जाना था ... ।


 मेरे जाने के समय वो बहुत उदास हो गया था। मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था। भारी मन से हम दोनों एक दूसरे से अलग हुये ... ।


इन्दौर आने पर मुझे अपने पुराने दोस्त फिर से मिल गये थे, रवि की यादें कम होते होते समाप्त सी हो गई थी। अब मैं अपने कुछ नये और कुछ पुराने आशिकों से फिर से पहले की तरह चुदने लगी थी, पर रवि जैसी कशिश किसी में नहीं थी।


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1 comment:

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