Wednesday 8 May 2013

सुहाना सफर


मैं जब २५ साल की थी. मैं उस समय झाँसी में रहती थी. मेरी जयपुर मैं नई नई नौकरी लगी थी
 मुझे २ दिन बाद जयपुर जाना था. पापा ने अपने ऑफिस का ही एक काम करने वाला, जो जयपुर में रहता था, उसे मेरे साथ में भेजने के लिए तैयार कर लिया था


घर की बेल बजी तो मैंने बाहर निकल कर देखा  एक सजीला २५ -२६ साल का लड़का बाहर खड़ा था
 मैंने पूछा - "कहिये ... किस से मिलना है ..."


उसने मुझे देखा तो वो बोल उठा -"अरे नेहा ... तुम यहाँ रहती हो .."


"हाय ... तुम अनिल हो ... आओ अन्दर आ जाओ ..." उसे मैंने बैठक मैं बैठाया।
अनिल मेरे साथ कॉलेज में पढ़ता था. उसने बताया कि वो अब पापा के ऑफिस में काम करता था


"अंकल ने बुलाया था ... जयपुर कौन जा रहा है .."
" मैं जा रही हूँ ..."


"अंकल ने मुझे आपके साथ जाने को कहा है .... रिज़र्वेशन के लिए बुलाया था ... मैं भी २ दिन बाद जा रहा हूँ "


मैंने सोचा कि कॉलेज में जब पढ़ते थे तो तब तो ये मेरी तरफ़ देखता भी नहीं था
 उसे देखते ही मन में पुरा्नी यादें उभरने लगी अनिल मुझे आरम्भ से अच्छा लगता था अब जयपुर तक साथ जाएगा तो इसे छोडूंगी नहीं 


 मैंने कहा - "आगे का स्लीपर लेना है ... वरना बस में परेशान हो जायेंगे झाँसी से जयपुर लंबा सफर है "


"ओके तो २ दिन बाद के स्लीपर लेना है ...अंकल को बता देना "
अनिल चला गया
 अब मैं अपने प्लान बनाने लगी .... मुझे सब समझ में आने लगा कि अनिल को कैसे पटाना है


हम बस स्टैंड पहुच गए
 बस में अनिल पहले से ही नीचे वाली डबल सीट पर बैठा था मेरे आते ही वो खड़ा हो गया और बाहर आ गया अभी बस जाने में १५ मिनट बाकी थे, मैंने आज सलवार और कुरता पहन रखा था पर पेंटी नहीं पहनी थी इस से मेरे चूतड़ में लचक अधिक दिख रही थी अनिल ने मेरे चूतड़ों को बड़ी हसरत भरी निगाहों से देखा मैं तुंरत भांप गयी मैं अब कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो गयी


"बड़ी सुंदर लग रही हो .."
"थैंक्स ..... अनिल ... सीट नम्बर क्या है "


"आगे वाले पहले दो स्लीपर है ... सिंगल नहीं मिला "
मन में सोचा ... ये अनिल की शरारत है
 पर मुझे तो मौका मिल गया था ऊपर से गुस्सा हो कर बोली -"मैंने तो सिंगल के लिए कहा था ....... पर ठीक है .."


"अरे यार ...खूब बातें करेंगे ...... साथ रहेंगे तो "


बस का टाइम हो गया था, पापा मुझे छोड़ कर जा चुके थे हम दोनों सीट पर आ गए आगे से दूसरे नम्बर की सीट थी पहले मैं जा कर खिड़की के पास बैठ गयी फिर अनिल भी बैठ गया बस खाली थी झाँसी से बस ग्वालियर तक खाली रहती है पर ग्वालियर में सब सीट फुल हो जाती है


 कंडक्टर से अनिल ने ग्वालियर तक सीट पर बैठने की परमिशन ले ली थी. अँधेरा हो चला था सड़क की बत्तियां जल उठी थी शाम के ठीक ७ .३० बजे बस रवाना हो गयी 


हम दोनों कॉलेज के टाइम की बातें करने लगे दतिया स्टेशन क्रॉस हो चुका था मैंने अपनी चादर और पानी की बोतल बगल में सीट पर रख दी और थोड़ा अनिल से सट कर बैठ गयी


 मेरे और अनिल की टांगे आपस में रगड़ खा रही थी उसकी जांघों का स्पर्श मेरी जांघों पर हो रहा था मैं अब जान कर बस के मुड़ने पर उस पर गिर गिर जाती थी और उसकी जंघे पकड़ कर सीधी हो जाती थी इतने में बस की लाइट जल गयी मैंने पीछे मुड कर देखा तो थोड़े से लोग सीट पर बैठे झपकियाँ ले रहे थे अचानक लाइट बंद हो गयी


अब बस में पूरा अँधेरा था. मैंने आंखे बंद कर ली और सर पीछे करके बैठ गयी इतने में मुझे महसूस हुआ कि मेरी जांघ पर अनिल के हाथ का स्पर्श हुआ है पजामे के ऊपर मेरी मुलायम जांघों को उसका हाथ छू रहा था, मैं सिहर उठी 


मुझे लगा अब अनिल चालू हो गया है पर मैं चुपचाप रही उसने अपना हाथ सहलाते हुए आगे बढाया और हौले से दबा दिया, मुझे करंट लगने लगा था मैंने आँखे खोल कर उसकी और देखा वो जान कर आंखे बंद करके ऐसा कर रहा था उसने हाथ चूत कि तरफ़ बढ़ा दिया।


 मौका हाथ से निकल न जाए इसलिए मैं चुप ही रही और टांगे थोडी चौड़ी कर दी अब उसका हाथ मेरे चूत की फांकों पर आ गया था मैंने अब उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपनी तरफ़ खींच लिया और उसे धीरे धीरे अपने स्तनों की तरफ़ ले जाने लगी अनिल ने मेरी तरफ़ देखा मैं भी उसकी नजरों में झाँकने की कोशिश करने लगी


उसने अपना चेहरा मेरी तरफ़ बढ़ा दिया मैंने भी धीरे से उसके होंट पर अपने होंट रख दिए वो मेरे होंटो को चूमने लगा मैंने भी जवाब में उसके होंटों के अन्दर अपनी जीभ डाल दी उसके हाथ मेरे स्तनों पर आ चुके थे अनिल ने मेरे बूब्स हौले हौले दबाना चालू कर दिए 


मेरी आँखे मस्ती में बंद होती जा रही थी मेरा हाथ उसके लंड की तरफ़ बढ़ चला पेंट के ऊपर से ही लंड की उठान नजर आ रही थी, मेने उस को ऊपर से ही सहलाना चालू कर दिया ऐसा लगा जैसे उसका लंड पेंट फाड़ कर बाहर आ जाएगा ..... 


अनिल के हाथ मेरे शरीर को दबा दबा कर सहला रहे थे मेरी उत्तेजना बदती जा रही थी मैंने उसकी पेंट का जिप खोला और अन्दर से लंड पकड़ लिया वो अन्दर अंडरवियर नहीं पहना था लगा की वो भी इसी तय्यारी के साथ आया था


"हाय रे मसल दो ..... हाय .... तुमने अंडरवियर नहीं पहनी है ..."
"नहीं ... मैंने तो जान कर के नहीं पहनी थी ... पर तुमने भी तो नहीं पहनी है ..."


" मैंने भी जान बूझ कर नहीं पहनी थी ..." तो आग दोनों तरफ़ लगी थी .....


मैंने खींच कर उसका लंड पेंट से बाहर निकल लिया मैंने झांक कर इधर उधर देखा सभी आराम कर रहे थे बस तेजी से मंजिल की और बढ़ रही थी 


उसका लंड देख कर मेरे मुंह में पानी आ गया मैंने उसके सुपारी के ऊपर की चमड़ी को ऊपर चढा दिया उसकी लाल लाल सुपारी खिड़की से आ रही लाइट से बार बार चमक उठती थी मैंने सर झुकाया और उसकी सुपारी अपने मुंह में ले ली


 और उसका लंड नीचे से पकड़ कर मुठ मारना चालू कर दिया मेरी हालत भी कुछ कम नाजुक नहीं थी मैंने भी अपने पजामे का नाडा खोल दिया था

 अब वो पीछे से हाथ बढ़ा कर मेरी गांड की गोलाईयों को दबा रहा था उसके हाथ मेरे चूतड की दरार में भी घुसे जा रहे थे. पर मैं बैठी थी और आगे झुकी हुयी थी इसलिए उसे चूत के दर्शन नहीं हो रहे थे हम दोनों के हाथ बड़ी तेजी से चलने लगे थे


उसने मेरी चूचियां मसल मसल कर मुझे बेहाल कर दिया था मेरे मुंह में लंड था इसलिए मैं आह भी नहीं निकाल पा रही थी


अनिल ने धीरे से कहा -"नेहा ...बस करो ... छोड़ दो अब "


" नहीं ... अभी नहीं ..राम रे ...मजा आ रहा है ..." मैंने उसकी सुपारी जोर से चूसने लगी और साथ ही जोर से मुठ मरने लगी
 वो अपने को रोक नहीं पा रहा था. दबी जबान से मस्ती के शब्द निकाल रहे थे ....."अरे .. बस ...अब नहीं .... बस ..बस .... हाय ... निकल रहा है ..नेहा ..." 


कहते हुए उसका लावा उबल पड़ा और रुक रुक कर पिचकारी छोड़ने लगा मेरे मुंह में उसकी सुपारी तो थी ही मेरे मुंह में रस भरने लगा मैंने गट गट कर पूरा पी लिया .... और चाट कर साफ़ कर दिया


मैं अब बैठ गयी उसने भी अपने कपड़े ठीक कर लिए मैंने भी पजामे को ठीक करके नाडा बाँध लिया ग्वालियर में बस पहुँच चुकी थी बस की लाइट जल उठी बस स्टैंड पर आ कर रुक गयी


कंडक्टर कह रहा था.... "१५ मिनट का स्टाप है ..... नाश्ता कर लो .....सभी अब अपने अपने स्लीपर पर चले जाए .."


हम दोनों बस से उतर गए. और कोल्ड ड्रिंक पीने लगे.


"नेहा .. मजा आ गया ... तुम्हारे हाथों में तो जादू है ....."
"और तुम्हारे हाथो ने तो मुझे मसल कर ही रख दिया ....." मैं मुस्कराई.
'मेरा लंड कैसा लगा ......."


"यार है 
तो खूब मोटा ......पर जब चूत में जाएगा तो पता चलेगा ..कि कैसा है .."

दोनों ही हंस पड़े


बस का टाइम हो रहा था
 हम दोनों बस में स्लीपर में घुस गए, और नीचे वाली दोनों सीट खाली कर दी स्लीपर में हमने चादर साइड पर रख ली और दोनों लेट गए बस फिर से चल दी मुझे अभी चुदवाना बाकी था


मैंने कहा -"अनिल मैंने नाडा खोल लिया है ....... तुम भी पेंट नीचे खींच लो न. ."

अनिल खुशी से बोला "चुदवाने का इरादा है ...... ठीक है .." 


अनिल ने स्लीपर का परदा खेंच कर बंद कर दिया. इतने में बस की लाइट भी बंद हो गयीअनिल ने अपना पेंट नीचे खीच दिया अब हम दोनों नीचे से बिल्कुल नंगे थे अनिल ने चादर अपने ऊपर डाल ली और मुझे कमर से खींच कर मेरी पीठ से चिपक गया 


मेरी चिकनी गांड का स्पर्श पा कर उसका लंड फिर से हिलोरें मरने लगा बार बार मेरी चूतडों की फांकों में घुसने की कोशिश करने लगा मैंने मुड कर उसकी तरफ़ देखा तो अनिल ने प्यार से मेरे गलों को चूम लिया और नीचे गांड पर जोर लगाया उसका लंड मेरी दोनों गोलाईयों को चीरता हुआ मेरी गांड के छेड़ से टकरा गया

 

मुझे लग रहा था कि वो जल्दी से अपने लंड को मेरी गांड में घुसेड दे मैंने एक हाथ बढ़ा कर उसके चूतड पकड़ लिए और अपनी तरफ़ जोर से चिपका लिया अनिल ने भी अपनी पोसिशन ली और अपने लंड को गांड के छेड़ में दबा दिया उसकी सुपारी गांड में फक से घुस गयी


 मेरे मुंह से आह निकल गयी, उसने अपना लंड थोड़ा बाहर खींचा और फिर से एक झटका दिया लंड अन्दर घुसता ही चला जा रहा था


 जैसा जैसा वो धक्के मरता लंड और अन्दर बैठ जाता लंड पूरा घुस चुका था अब अनिल रिलाक्स हो गया और लेट गया अब वो मजे से गांड चोद रहा था मुझे भी अब मजा आने लगा था उसके धक्के अब तेज होने लगे थे


अचानक उसने मुझे सीधा लेटाया और मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरी चूत में अपना लंड घुसेड दिया लंड बस के झटको और धक्कों से एक बार में अन्दर तक बैठ गया मैं खुशी के मारे सिसकारी भरने लगी


"धीरे .... नेहा ...धीरे ..."


"अनिल ..मैं मर जाऊंगी ...हाय ..." उसने मेरे होटों पर होंट रख दिए जिस से मैं कुछ न बोल सकूँ .....


मेरी उत्तेजना बढती जा रही थी. मैंने अपनी चूतडों को हिला हिला कर जोर से धक्कों का उत्तर धक्कों से देने लगी. अब मुझे लगाने लगा कि मैं झड़ने ही वाली हूँ
 


नीचे आग लगी हुयी थी ....... मेरी चूत में मीठी मीठी गुदगुदी तेज हो उठी मन में सिस्कारियां भर रही थी


 अब लग रहा था कि अब मैं गयी ......मैंने चूत को ऊपर दबाते हुए जोर से पानी छोड़ने लगी


 मेरा मुंह उसके होटों से चिपका था कुछ बोल नहीं पाई और अब पूरा पानी छोड़ दिया उधर अनिल ने भी अपनी रफ़्तार तेज कर दी मैं झड़ चुकी थी और अब उसका लंड का मोटापन और उसका भारी पन महसूस होने लगा था अचानक ही उसके लंड का दबाव मेरी चूत में बहुत बढ गया


 मेरे मुंह से चीख निकल कर उसके होटों में दब गयी मुझे अपनी चूत में अब गरम गरम रस निकलता हुआ महसूस होने लगा उसके वीर्य की गर्माहट मुझे अच्छी लगने लगी अनिल निढाल हो कर मेरे पास में लुढ़क गया उसका वीर्य मेरी चूत में से बह निकला मैंने चादर को अपनी चूत पर लगा दी वीर्य रिसता रहा मैं उसे पोंछती रही


अचानक लगा कि कोई सिटी आने वाला है मैंने अनिल को उठाने के लिए हिलाया पर वो सो चुका था मैंने अपने कपड़े ठीक कर लिए


 और अनिल के पेंट को ठीक करके उस पर चादर ओढा दी बस रुक चुकी थी धौलपुर आ गया था, यहाँ पर यात्री डिनर के लिए उतरते हैं पर मैं एक करवट लेकर अनिल से चिपक कर सो गयी.............


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Monday 4 February 2013

पापा के जूनियर से चुदी


मैं गर्मी की छुट्टियों में रतलाम आ गई थी अपने पापा के पास। घर में छुट्टियों में बहुत पाबन्दी रहती थी ना। पापा तो ऑफ़िस चले जाते थे सो आराम से घर पर आराम करती रहती थी। घर में अकेले रहने में बड़ा आनन्द आता है। एक तो खाली दिमाग शैतान का घर होता है, दूसरे यह कि आपको कुछ भी करने से कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता है। बिस्तर पर लेटे लेटे एक से एक मनभावन ख्याल आते रहते हैं। मन दूर कहीं सपनों में खो जाता है ... 


कई ऐसे लड़कों की तस्वीरें मन में उभर आती हैं जिनके साथ मैं वासना का खेल अन्तरंग अवस्था में खेला करती थी। मुझे लगता था कि अब भी मेरे साथ वो मुझसे खेल रहे हैं, मेरी नर्म-नर्म छातियों में अपना मुख लगा कर मेर दूध पीने की कोशिश कर रहे हैं, मेरे गुप्तांगों से खेल रहे हैं। 


इसी ताने-बाने में उलझ कर मैं अपनी दोनों टांगें ऊपर उठा लेती हूँ और अपनी नर्म और गर्म हो चुकी फ़ुद्दी को सहलाने लगती हूँ। शेविंग के कारण मेरी झांट के बाल भी अब कड़े और कांटो की तरह निकल आते हैं, पर ये हाथ से सहलाने पर बहुत गुदगुदी करते हैं।जितना भी मैं अधिक सहलाती, मेरी उत्तेजना और भी बढ़ती जाती, मेरी चूत गीली होने लगती थी, चिकनाई उभर आती। उसी चिकनाई का सहारा लेकर मैं अपनी गाण्ड का फ़ूल भी चिकना कर के उसे धीरे धीरे रगड़ती।


मेरी पाठक सहेलियो, आपने भी कभी ऐसा करके देखा है? जरूर किया होगा, ऐसा करने से जो मजा आता है वो अविस्मरणीय है। इस चिकनाहट का सहारा लेकर आप अपने इस छेद में अंगुली भी डाल सकती हैं। अब ऐसे माहौल में कोई आ जाये तो ... आह ! क्या कहने ... मैं तो बिना चुदे नहीं रह सकती ... जवानी का रस निकाले बिन मजा ही नहीं आयेगा। मजा तो तब और भी ज्यादा हो जाता है जब चोदने वाला आपका ही मन पसन्द साथी हो ... कड़क, मोटे लण्ड वाला ... है ना !


घर में मैं अकसर एक हल्का रंग बिरंगा पजामा, और टाईट बनियान पहने रहती हूँ। अन्दर तो कुछ पहनने का सवाल ही नहीं है। मेरी इसी अवस्था में एक दिन पापा का एक जूनियर घर पर आ गया। मैं उसे पहचान गई !


ओह ये तो रवि है ...पर क्या करूँ ? यह तो साला तो मुझसे बात ही नहीं करता है, बात करो तो पसीना पसीना हो जाता है।


पर वो है बहुत सुन्दर, मस्त सा लड़का है, मुझे जाने क्यूँ उसमें बहुत आकर्षण नजर आता है।मैंने उसे प्यार से बैठक में बैठाया।


"मुझे वर्मा जी से मिलना है, अभी तक वो ऑफ़िस नहीं पहुँचे हैं !" वो कुछ सकुचा कर बोला।उसकी नजर तो मेरी तरफ़ उठ ही नहीं रही थी।


"हां जी, वो देरी से निकले हैं, फिर उन्हें रास्ते में काम भी है, पहुँचते ही होंगे, चाय तो ले लेंगे आप।" मैंने उसकी हिचक दूर करने में उसकी सहायता की।


वो ना नुकुर करता रहा, पर मैंने उसे जिद करके बैठा ही लिया। किचन में से रवि साफ़ नजर आ रहा था। मेरा पजामा मेरे चूतड़ों में घुसा हुआ उनका पूरा आकार दिखा रहा था। झुकने पर मेरे चूतड़ों की गोलाईयाँ भी अपनी गहराई के साथ उसे नजर आ रही होंगी।


दूर से ही मैंने भांप लिया कि उसकी नजरें मेरे शरीर का ही मुआयना कर रही थी। उसकी दिलचस्पी मुझमें हो चली थी। फिर तो मैंने उससे पन्द्रह मिनट में ही दोस्ती कर ली। 


अब उसकी झिझक खुल चुकी थी। उसका कहना था कि वो लड़कियों से बात करने में शरमाता है। मैंने उसे फिर समय काटने के लिहाज से उसके पास बैठ कर अपना एलबम दिखाया। उसे मेरा सामिप्य बहुत अच्छा लग रहा था। फिर मैंने उसकी मनःस्थिति का अन्दाजा लगा कर उसे जाने को कह दिया। उसका मन बिल्कुल भी जाने का नहीं हो रहा था।


"रवि जी, आप आते रहियेगा, आपका व्यवहार मुझे बहुत अच्छा लगा।" मैंने उसकी ओर अपना झुकाव दर्शाया।


"जी जरूर, समय निकाल कर जरूर आऊंगा ..." वो मुझे बार बार मुड़ कर देखता रहा। मैं उसे हाथ हिलाती रही।


वो दूसरे दिन पापा के ऑफ़िस जाते ही आ गया।"वर्मा जी हैं क्या ?""जी नहीं, मिस वर्मा है ... मिलना हो तो और चाय पीना हो तो मिस वर्मा हाजिर है।" मैंने उसे हंस कर कहा।


वो हंसता हुआ अन्दर आ गया। बातों बातों में उसने मुझे बता दिया कि उसे पता था कि मेरे पापा को उसने जाते हुए देख लिया था और वो मुझसे मिलने ही आया था।


"तो रवि जी, तो फिर रोज ऐसे ही पापा के जाने के बाद आ जाया करो, खूब बातें करेंगे।" मैंने उसे और बढ़ावा दिया।


आज मैंने सिर्फ़ कुर्ता पहन रखा था, सलवार नहीं पहनी थी। सो मेरे कुर्ते में से मेरी चूचियाँ हिल हिल कर उसे बेहाल किये दे रही थी। मैं फिर से आज एक मेगजीन लेकर उसकी बगल में बैठ गई और उसे दिखाने लगी। पहले तो वो मेगजीन देखता रहा, मेगजीन नहीं जी, कुर्ते में से मेरे बोबे देख रहा था।


कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना ... और नतीजा ! उसका पैन्ट में से उभरता हुआ लण्ड ...। 

मैं समझ गई कि अब वो मेरा समीप्य पा कर उत्तेजित हो रहा है। मैंने अपना चेहरा ज्योंही उठाया उसका चेहरा मेरे बिल्कुल नजदीक था। मेरी तो जैसे सांसें ही रुक गई। उसकी आँखें मेरी आँखों में कुछ ढूंढने लगी। मेरे हाथों से वो मेगजीन छूट गई, हाथ थरथराने लगे। मेरे चेहरे पर पसीना आ गया। वो मुझे एकटक देखता हुआ, मेरे और पास आ गया कि उसकी गरम साँसें मुझसे टकराने लगी।


"र...र... रवि ... " मैं सच में इस हमले से बेचैन सी हो गई थी।"हां नेहा ... तुम कितनी सुन्दर हो..." वह अपने हाथों से मेरे हाथ को पकड़ता हुआ बोला।'रवि, ऐसा मत बोलो ..." मैं उसकी आँखों में देखने लगी।


"नेहाऽऽऽऽ ..." उसके होंठ मेरे होंठों से छूने लगे। मेरे तन में जैसे बिजलियाँ तड़क उठी। तभी उसने अपने अधर मेरे अधरों से टकरा दिये और उन्हें चूसने लगा। मुझे भी दिल में बहुत सुकून मिला। मैं अपने आप को उसके हवाले करने की कोशिश करने लगी। उसने भी मौका देखा और मुझे बड़ी मधुरता से चूमने चाटने लगा। मेरा कुर्ता नीचे से ऊँचा हो गया। मेरी चिकनी मांसल जांघें उसे पिघलाने लगी। उसका लण्ड बहुत ही सख्त हो चुका था। लगता था कि पैन्ट फ़ाड़ कर बाहर आ जायेगा। मैंने भी उसे अपनी बाहों में समेट लिया और अपने कठोर स्तन उसके शरीर में दबा कर रगड़ने लगी। मेरे उत्तेजित स्तन के चुचूक कड़े होकर उसकी छाती में जैसे कील की तरह गड़ने लगे थे।


उसके हाथ मेरी पीठ को दबाने और मसलने लगे थे। मुझे उठा कर वो अपने लण्ड पर बैठाने की कोशिश कर रहा था। तब मैंने उसकी तड़प को और बढ़ा दिया। मैंने अपना हाथ उसके सख्त लण्ड पर रख दिया और धीरे धीरे उसे दबाने लगी। मुझे लण्ड दबाते देख कर उसने मेरी छाती पर हाथ डाल दिया और मेरे कठोर उरोजों को दबाने लगा। मेरी मन की कली खिल उठी। मैं अपना आपा खोने लगी। मैंने जान करके अपने कुर्ते को और ऊपर कर लिया।


'रवि, बस अब नहीं ... मैं मर जाऊंगी !" मेरी सांस धौंकनी के समान चल रही थी। मैं उसके चेहरे पर आते जाते भावों को देखने लगी। वो बहुत ही बेताब हो रहा था।


"और मैं ! मेरा तो बुरा हाल हो रहा है, अब क्या करूँ ?" वो पसीने में नहा चुका था, उसके दिल की धड़कन मेरे कानों तक सुनाई दे रही थी।


"कुछ नहीं, बस अब तुम जाओ !" मैंने उसे और अधीर करते हुये धकेला।"नेहा ! ऐसा मत कहो ... तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगा !" वो मुझसे और लिपटने लगा।


"ओह ! मरना ही है तो यहाँ नहीं, अन्दर बिस्तर पर चलो !" अब मुझे पता था कि मेरी लाईन साफ़ है। अब तो बस चुदना ही है। उसे भी कहाँ अब चैन था। उसने तो मुझे जल्दी से अपनी बाहों में उठा लिया और मेरा चेहरा चूमता हुआ बिस्तर पर ले चला। उसने मेरा कुर्ता खींच कर उतार दिया और मुझे पूरी नंगी कर दिया। मर्द के सामने नंगी होकर मुझे एक आलौकिक आनन्द सा आने लगा। 


फिर उसने अपने कपड़े भी जल्दी से उतार दिये और नंगा हो गया। बहुत महीनों के बाद मैं चुदने वाली थी और लण्ड भी बहुत दिनों के बाद देखा था इसलिये चुपचाप मैं उसे निहारने लगी। एक मर्द का सुन्दर सीधा सख्त लण्ड, मेरे दिल को घायल कर रहा था। बस बेचैनी चुदने की थी। वो बिस्तर पर जाकर सीधा लेट गया, उसका लण्ड हवा में सीधा तन्ना कर लहरा रहा था।


"आ जाओ नेहा, पहला मौका तुम्हारा ! अब तुम जो चाहे वो करो।" उसने मुझे ऊपर आ कर चोदने का न्यौता दिया।


मुझे तो एक बार शरम सी आ गई। कैसे तो मैं उसके ऊपर चढूंगी ? फिर कैसे अपने शरीर को उसके ऊपर खोल कर लण्ड लूंगी ! मुझे लगा कि यह बहुत अधिक बेशर्मी हो जायेगी। सारा शरीर, यानि कि मैं पूरी की पूरी ही अपने जिस्म को ...


"रवि, मुझे शरम आती है, तुम ही कुछ करो ना !" मैंने शरमाते हुये कहा।


उसने मेरी एक ना सुनी और मेरी बांह पकड़कर मुझे प्यार से अपनी ओर खींचने लगा। मैं शर्माती सी अपने दोनों पांव खोल कर उसके लण्ड पर बैठने लगी। वो मेरे पूरे नंगे शरीर को बेशर्मी से देखने लगा। मैंने उसकी आँखों पर अपना कोमल हाथ रख दिया।


"मत देखो ऐसे ... मैं तो मर जाऊंगी !' मेरे शरम से बोझिल आंखो को देख कर वो बहुत ही उत्तेजित होने लगा।


मैंने उसके ऊपर बैठ कर लण्ड पर अपनी चूत रख दी। उसका लाल सुपाड़ा मेरी गीली चूत पर आ टिका। चूत की पतली सी पंखुड़ियों को खोल कर उसका लण्ड थोड़ा सा अन्दर भी चला गया था। जवान चूत थी, कड़क लण्ड था, दोनों का मिलन हो रहा था। दोनों ने एक दूसरे का चुम्मा लिया, और वो चूत की चिकनाई से सरकता हुआ अन्दर की ओर बढ़ चला। 


मेरे तन में एक मीठी सी ज्वाला जल उठी। तभी रवि का हाथ मेरी चूचियों पर आ चिपका। मैं अपनी आँखें बंद करके उसके ऊपर लेट गई। उसने भी नीचे से जोर लगाया और लण्ड को जोर मार कर ठीक से जड़ से टकरा दिया। गुदगुदी भरी मिठास के कारण मैं उससे चिपकने लगी।"नेहा, अब कुछ करो तो ... देखो, बहुत मजा आयेगा !" उसकी उतावला स्वर मुझे भी तड़पा रहा था।


"नहीं जी, मुझे तो बहुत शरम आयेगी।" मैंने अपनी सादगी उसे दिखाई।'सुनो, थोड़ा सा ऊपर उठा कर फिर से पटको।" उसने अपनी उत्तेजित आवाज में कहा।"रवि, प्लीज ... मैंने यह कभी किया नहीं है, बताओ तो कैसे ?" मैंने उसे और तड़पाते हुये कहा।


"बस, अपनी चूत को अन्दर बाहर करो।" उसने मेरी चूतड़ों को सहला कर कहा।"धत्त, ... ऐसे क्या ?" मैंने जानकर शराफ़त का नाटक किया।


"अरे ऐसे नहीं, देखो ऐसे..." उसने नीचे से थोड़ा सा करके बताया। मुझे मन ही मन में हंसी आई, ये लड़के भी कितने भोले होते है। मैंने उसी स्टाईल में एक दो धक्के दे दिये तो वो चीख सा उठा।


"आह, नेहा, बस ऐसे ही, जरा जोर से !" वो मारे आनन्द के तड़प सा उठा।"आह ! मुझे भी मजा आया, कैसा कैसा लग रहा है ना?" मैंने भी उसे अपनी उत्तेजना बताई।


अब मैं मन ही मन खुश होती हुई चुदाई की क्रिया में लीन हो गई। बहुत दिनों बाद चुदने से बहुत आनन्द आ रहा था। उसका लण्ड भी जानदार था। मैंने भी धीरे धीरे अपने तरीके से में चूत को घुमा घुमा कर चुदना आरम्भ कर दिया था। वो बार बार अपनी कमर को उछाल कर अपनी उत्सुकता दर्शा रहा था, सिसकारियाँ भर रहा था। मैं भी अपनी प्यास बुझाने में लगी थी। मेरे शरीर में गुदगुदी भरी मीठी मीठी लहरें चल रही थी, एक लय में होकर हमारे अंगों का संचालन हो रहा था। अब मैं भी हल्की चीखों के साथ उसको अपनी खुशी दर्शा रही थी।


अब रवि ने अपने से चिपकाये हुये धीरे से पल्टी मारी और मेरे ऊपर आ गया। मुझे लगा कि अब होगी जबरदस्त चुदाई। मेरे ऊपर सवार होकर सच में उसने अपना शॉट जोर से कस कर मारा कि मेरी तो जान ही निकल गई। वो मदहोशी के आलम में मुझे जोर जोर से चोदने लगा। मेरा तन जैसे हवा में उड़ने लगा। मैं आनन्द से सराबोर, दूसरी दुनिया में आनन्द से तड़पने लगी। फिर मुझे लगा कि मेरा तन मेरा साथ छोड़ रहा है। अत्यन्त तीव्र मादक भरी कसक ने मेर तन तोड़ दिया। ... जैसे एक नदी के उग्र बहाव में शान्ति सी आ गई। मैं झड़ने लगी थी ... बहुत अधिक वासना के कारण मैं अपने आप को रोक नहीं पाई।


रवि तो आँखें बंद करके मस्ती में चोदता ही चला गया। मुझे में फिर से उत्तेजना भरने लगी। इस बार मैं उसका लण्ड दोनों पांव खोल कर चूत उछाल उछाल कर ले रही थी। मेरी चूत को वो कस कर पीट रहा था। अरे ! मां मेरी, वो तो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मुझे तो लगा कि मैं तो फिर से झड़ने वाली हूँ। तभी उसके मुख से एक धीमी हुंकार सी निकली और उसने अपना लण्ड मेरी चूत में कस कर दबा दिया। ओह ! जैसे ही उसने चूत में लण्ड दबाया, तो जैसे मेरी जान ही निकल गई, मैं दूसरी बार झड़ने लगी। 


तभी उसने अपना मोटा सा लण्ड मेरी चूत में से बाहर निकाल लिया और उसके लण्ड ने एक भरपूर पिचकारी मार दी। उसका वीर्य मेरे पेट और छाती तक उछल कर आ गया। फिर वो मेरे उपर लेट कर अपना पूरा वीर्य लण्ड को मेरे नाजुक पेट पर दबा दबा कर निकालने लगा। मैं प्यार से रवि को निहारने लगी, उसके बालों पर हाथ फ़ेरने लगी। इस हालत में भी वो कभी कभी मेरे अधरों को चूम लेता था।


"नेहा, तुम तो बला की चीज़ हो, देखो मेरा क्या हाल कर दिया!" उसने मेरी तारीफ़ के पुल बांधना शुरु कर दिया।


"ओह रवि, मुझे तो आज पहली बार कोई तुम जैसा लड़का है, मुझे नहीं पता था कि इसमें इतना मजा आता है !" मैंने भी उसे अपनी मासूमियत दर्शाई।


"नेहा जी, एक विनती है, पीछे से करवाओगी क्या ? वहाँ पर तो अलग तरह का मजा आता है।" किसी अनुभवी चुदक्कड़ की तरह बोला वो।


"सच? पीछे से करोगे? ... वहां से भी करते है क्या ?" मैंने उसे आश्चर्य से देखा।"अजी आप आज्ञा तो दें !" उसने बड़ी स्टाईल से कहा जैसे दुनिया में उससे बड़ा कोई अनुभवी ही ना हो।


"मजा तो आना है ना, तो फिर क्या पूछना ? चलो करते हैं।" मैं भी अपने आपको मासूम जता कर तैयार हो गई। मन में तो लड्डू फ़ूट रहे थे कि यह आप ही मान गया गाण्ड चोदने को, वरना ना जाने कितने और बहाने करने पड़ते गाण्ड चुदवाने के लिये।


उसने कुछ ही देर में मुझे घोड़ी बना कर गाण्ड मारनी शुरू कर दी। मुझे अब क्या चाहिये था भला ? मेरे तो आगे पीछे सभी कुछ उससे चुदवाने की इच्छा थी, सो मुझे तो बहुत ही आनन्द आने लगा था। उसने मेरी गाण्ड तबियत से मारी। हां ! उसे देसी घी लगा कर चोदने में मजा आता था। सो बस किचन से देसी घी लाना पड़ा था। 


पहले तो उसने देसी घी लगा कर मेरी गाण्ड को खूब चाट चाट कर मुझे मस्त कर दिया, शायद काफ़ी सारा घी तो वो मेरी गाण्ड में लगा कर ही चाट गया था। फिर गाण्ड चुदवाने में मेरी तबियत हरी हो गई। बहुत कम चुदती थी ना मेरी गाण्ड ! पर जब चुदती थी तो बस मारने वाले मेरी गाण्ड का बाजा ही बजा देते थे। अन्त में उसके झड़ने से पहले मैं तो बहुत उत्तेजित हो गई थी सो एक बार उससे और चुदवा लिया था।


इस घटना के बाद तो अब रोज ही पापा के ऑफ़िस जाने के बाद आ जाया करता था और मुझे चोद जाया करता था। भेद खुलने के डर से अब मैंने उसको सप्ताह में एक या दो बार आने को कह दिया था। उसके साथ मेरी पूरी छुट्टियों में खूब जमी। मैंने उससे खूब चुदाया और खूब मस्ती की। कॉलेज के खुलने का समय पास आ गया था और मुझे वापस इन्दौर भी जाना था ... ।


 मेरे जाने के समय वो बहुत उदास हो गया था। मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था। भारी मन से हम दोनों एक दूसरे से अलग हुये ... ।


इन्दौर आने पर मुझे अपने पुराने दोस्त फिर से मिल गये थे, रवि की यादें कम होते होते समाप्त सी हो गई थी। अब मैं अपने कुछ नये और कुछ पुराने आशिकों से फिर से पहले की तरह चुदने लगी थी, पर रवि जैसी कशिश किसी में नहीं थी।


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Sunday 3 February 2013

कोमल और भाभी



मेरा नाम राजन है। मैं लुधियाना (पंजाब) का रहने वाला हूँ। मेरी आयु तेईस साल है। मैं पहली अपने साथ बीती को पाठकों के सामने पेश करना चाहता हूँ।


यह तब की बात है जब मैं बारहवीं में था, नवम्बर की। हमारे घर के पड़ोस में एक भाभी रहती थी उनसे मेरी खूब बनती थी। वहीं हमारे पड़ोस में एक खूबसूरत लडकी कोमल भी रहती थी।  

वह जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी। जब भी मैं उसकी संतरे जैसी चूचियों को देखता था तो मेरे मन में एक ही ख्याल आता था कि अभी जाकर उनका सारा रस निकालकर पी जाऊं। स्कर्ट पहने हुए उसकी कमर एवं जांघों को देखकर मुँह में पानी आ जाता था। वह कभी भी अपने होंठों पर लिपस्टिक नहीं लगाती थी, फिर भी उसके होंठ गुलाबी लगते थे। हर वक्त उसके होंठों को चूसने का दिल करता था।


वो भी भाभी के पास खूब आया जाया करती थी। मुझे वो बहुत प्यारी लगती थी। धीरे धीरे कोमल मेरे से भी बहुत बातें करने लगी। हम दोनों की खूब बनने लगी।


एक दिन मैंने भाभी से उसके साथ मित्रता करवाने के लिए कहा। पहले तो भाभी ने थोड़ी आनाकानी की पर बाद में कुछ सोच कर बोली- पूछ लूँगी !


मैं अगले दिन जब भाभी के पास गया तो मैंने भाभी से पूछा- आपने उससे बात की?
तो भाभी ने कहा- मैं क्यों करूँ? मेरा क्या फायदा?


मैंने कहा- आप मेरे भाभी हो ! आप मेरी मदद नहीं करोगी तो कौन करेगा?
मैंने कहा- आपको क्या चाहिए? आप जो मांगोगी मैं आपको दूंगा।


तो वो बोली- पक्का?
मैंने कहा- हाँ ! पक्का !
वो बोली- उसने हाँ कर दी !
मैं मन ही मन बहुत खुश हुआ।


तब मैंने भाभी से कहा- उसे बुला दो ! मैंने उससे बातें करनी हैं।
भाभी मेरी उत्सुकता समझने लगी थी तो भाभी ने उसे बुला दिया।
उसने गुलाबी सूट पहन रखा था, जिसमें वह बहुत सुंदर लग रही थी।
वो आई, मेरे से खूब बातें की।


तभी भाभी बोली- तुम दोनों बैठो ! मैं दुकान से दूध लेकर आती हूँ।
भाभी को वहाँ जाकर आने में तक़रीबन बीस मिनट लगने थे।
कोमल भाभी के जाते ही मेरे और पास आ गई।
मैंने कहा- मुझे जफ्फी डालनी है !


तो उसने फ़ौरन मुझे अपनी बाहों में ले लिया। मैंने आगे बढ़कर उसके हाथों को चूम लिया, फिर उसके गुलाबी और कोमल होंठों को अपने होंठों से सटाया तो उसकी गर्म साँसे महसूस हुई जोकि काफी तेज चल रही थी।


मुझे भी जोश आने लगा मैं उसके होंठों को चूमने लगा। धीरे धीरे उसको भी जोश आने लगा और वो भी मेरे साथ प्यार करने लगी। उसके होंठों को मैं करीब दस मिनट तक चूसता रहा हूँगा। वह भी अपनी जीभ मेरे मुँह में डालकर चाट रही थी। फिर मेरे हाथ उसके सर पर से सरक कर उसकी चूचियों पर आ गए।


जब मैंने उसकी चूचियों को हाथों से दबाया तो वह सिसिया कर बोली- नहीं 
राजन , आज नहीं ! आज मुझे बहुत डर लग रहा है।


मैंने उसकी एक न सुनी और धीरे धीरे उसके कपड़े उतारने लगा। कुछ देर बाद उसके बदन पर केवल पैंटी और छोटी सी ब्रा ही बच गई। फिर मैंने उसके गले पर चूमते हुए उसके पीछे जाकर ब्रा के हुक खोल दिए।


वाह ! क्या नज़ारा था। वह मेरे सामने लगभग नंगी खड़ी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं इसके साथ क्या करूँ !


वह केवल सर झुकाए खड़ी थी।
फिर मैं आगे जाकर उसकी चूचियों को धीरे धीरे मसलने लगा जिस कारण उसके छोटे-छोटे से चुचूक कड़े लगने लगे। उसके चुचूकों को मैं अपनी जीभ से चाटने लगा जिससे उसके मुँह से सी…सी….की आवाजें आने लगी। मैं समझ गया कि अब वह गर्म होने लगी है।
फिर अचानक मैंने उसका हाथ अपने 8 इंच खड़े लण्ड पर महसूस किया, वह उसे पैंट के ऊपर से ही सहला रही थी।


मैंने फट से अपनी पैंट और अंडरवियर खोल दिया। वह मेरे लण्ड को आगे पीछे कर रही थी और मैं उसके चूचियों को बारी बारी से चाट रहा थ। फिर मैंने उसे घुटने के बल बैठाया और अपने लण्ड को चाटने को कहा। पहले तो उसने मना कर दिया पर मेरे जोर देने पर कोमल ने अपने कोमल होंठ मेरे लण्ड पर रख दिए। फिर धीरे धीरे उसे अपने मुँह में अन्दर बाहर करने लगी। पहली बार कोई मेरे लण्ड को अपने मुँह से चाट रही थी। मानो एक अजीब सी दुनिया में अपने आपको महसूस कर रहा था।


धीरे धीरे उसकी स्पीड बढ़ रही थी। एक समय ऐसा लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ। मैंने फट से लण्ड को बाहर निकाला और कोमल को बेड पर लेटा कर उसके पैंटी को उतार दिया। उसकी बिना बाल वाली चिकनी चूत को देखकर मैं बेकाबू हो गया। मैंने उसकी बूर पर हाथ फेरते हुए एक ऊँगली बूर में डाल दी जिससे उसकी सिसकारियाँ निकल पड़ी। धीरे धीरे उसकी बूर से पानी रिसना शुरू हो गया। मैं अपना मुँह उसकी बूर पर रखकर चाटने लगा। कभी कभी अपने जीभ उसके बूर में भी डाल देता जिससे वह चीख पड़ती।


तभी एकदम से भाभी आ गई …


उन्होंने हमें देखा और डाँटने लगी। हम दोनों ने फटाफट कपड़े पहने। भाभी ने कोमल को घर जाने को कहा। कोमल डर के मारे घर चली गई।


भाभी मुझे समझाने लगी।


वो बोली- ऐसे काम किसी भी समय करने के नहीं होते ! यह तो मैं थी ! अगर कोई और आ जाता तो क्या करते तुम दोनों?


तो मैंने पूछा- तो कब करते हैं?
भाभी बोली- रात को !


मैंने सोचा कि भाभी को हमें मिलाने में कोई आपत्ति नहीं है, मैंने तब जान कर पूछा- भाभी, रात को कहाँ?


वो बोली- यहीं पर ! जब तेरे भईया न हो ! वो हफ्ते में एक दिन दिल्ली जाते हैं कम्पनी के काम के लिए ! तब रात को कोमल ही मेरे पास सोती है, तब कर लेना तुम दोनों।
मैंने कहा- ठीक है !
फिर मैं घर चला गया।


अगले दिन जब मैं भाभी के घर गया तो वो बोली- तुम्हारा काम आज रात को हो जाएगा ! तेरे भैया आज ही दिल्ली जा रहे हैं।
तो मैंने कहा- मैं कितने बजे आऊँ?
भाभी ने कहा- दस बजे !
मैंने कहा- ठीक है।


मैंने घर में दोस्त की पार्टी का बहाना बनाया और पूरे दस बजे भाभी के घर आ गया।
भाभी ने मेरे आते ही अन्दर से कुंडा लगा लिया।
मैंने पूछा- भाभी ! कोमल नहीं आई?
वो बोली- उसने कहा था, पर आई नहीं अभी तक !
वो बोली- आ जाएगी ! इतना तड़पता क्यों है?


मैंने कहा- नहीं ! ऐसी कोई बात नहीं ! मैं इन्तज़ार कर लेता हूँ।
मैं और भाभी बातें करने लगे। फिर 11 बजे मैंने भाभी से कहा- भाभी, वो अभी तक नहीं आई?
भाभी बोली- पता नहीं !


तब फ़िर भाभी बोली- लगता है कि वो आज नहीं आयेगी।
तो मैंने कहा- भाभी, मैंने घर में पार्टी का बहाना बनाया है ! कम से कम एक बजे तक मुझे यहाँ रुकना पड़ेगा !


वो बोली- कोई बात नहीं ! तू यही रह जा ! हम दोनों बातें करते हैं !
फिर मैं और भाभी बातें करने लगे।


भाभी ने मुझसे दिन वाली बात पूछते हुए कहा- मैं तो तुम्हें भोला समझती थी ! तुम तो बहुत तेज निकले?


मैंने जानबूझ कर भाभी से कहा- भाभी ! मैंने क्या किया?


तो भाभी मुझे छेड़ते हुए बोली- पन्द्रह-बीस मिनट में तूने उसे बिलकुल नंगी कर दिया और उसकी चूत पर आ गया ? वाह ! तू कमाल है।


तो मैंने शर्म से मुँह नीचे कर लिया।
तो वो बोली- मुझसे क्यों शर्माता है? मैं तेरी भाभी हूँ।


फिर वो बोली- तेरा औजार बहुत बड़ा है ! इतना तो तेरे भाई का भी नहीं।
मैं समझ गया भाभी की बातें ! कि उन्हें मेरा लौड़ा चाहिए !


तो मैं भी शरारती स्वर में बोला- भाभी ! आपको कैसा लगा?
तो भाभी बोली- मेरा दिल तो उसी समय उस पर आ गया था ! मैं चाहती थी कि कोमल को हटा कर वहाँ मैं लेट जाऊँ !


तो मैंने भाभी से कहा- तो रोका क्यों ? आप भी आ जाती !
तो उन्होंने कहा- कोमल के सामने नहीं कर सकती थी ! इसीलिए तुम्हें रात को बुलाया और कोमल को नहीं।


मैंने कहा- तो यह आपकी कारस्तानी थी?
वो बोली- हाँ ! अगर मैं ऐसा न करती तो तू मुझे कैसे मिलता?
फिर मैंने कहा- अब मैं कोमल को कैसे चोदूँगा?


तो वो बोली- तू मुझे खुश कर दे ! मैं कोमल को मना दिया करुँगी और बदले में तुम्हें मेरे से भी करते रहना होगा !
मैंने तुरंत कहा- ठीक है भाभी जी ! जैसा आप कहें !


उसके बाद हम दोनों ने शुरु कर दिया। मुझसे बिल्कुल भी रूका ना गया, मैंने उन्हें जल्दी से दोनों हाथों से पकड़ा और बिस्तर पर लिटा दिया और अधीर होकर भाभी के होंठों को चूमने लगा। उन्होंने कुछ भी नहीं कहा और मैं गर्म हो गया। फ़िर तो मैंने प्रगाढ़ चुम्बन भी किया। मेरा लण्ड तो पूरा सख्त हो गया।


उन्होंने भी मेरे मुँह पर बहुत चुम्बन लिए। उनके मम्मे तो कमीज़ में भी थोड़े थोड़े नज़र आ रहे थे। वो भी गरम हो गए और मेरी चूमा-चाटी उन्हें और गरम करती गई। उन्होंने गद्दा सख्ती से पकड़ लिया और मुझे वो सब करने दिया जो मैं करना चाहता था। मैंने उनकी कमीज़ उतारी और अपनी भी। वो इतनी गर्म हो चुकी थी कि उनका चेहरा लाल हो रहा था।
मैंने उनकी सलवार उतारी और उनके बड़े बड़े चूतड़ों को दबाने लगा। उन्होंने अपने पूरे बदन की वैक्सिंग की हुई थी, शायद मेरे लिए खास !


उन्होंने अन्दर एक लाल रंग की पैंटी पहनी हुई थी। फ़िर मैंने उसकी पैंटी को भी उतार दिया, क्या मज़ेदार चीज थी उनकी चूत !


उनकी चूत को देखते ही मेरा लंड खड़ा हो गया। उनकी चूत पर एक भी बाल नहीं था और उनकी चूत के होंठ भी गुलाबी थे।


मैंने जैसे ही उनकी चूत को छुआ, वो एकदम से कराह उठी। मैंने धीरे से उनकी चूत में ऊँगली डाली और उसके होंठों को रगड़ा ! उनकी चूत बहुत कसी लग रही थी।


फ़िर मैंने उनकी चूत को चूमा और मुझसे रहा नहीं गया, मैं उसकी चूत को चूसने लगा......
वो पागलों की तरह आवाजें निकालने लगी, पूरा कमरा सेक्सी आवाजों से गूंज रहा था कुछ इस तरह- ऊऊऊह्ह्ह्ह् आआह्ह्ह ऊऊफ़्फ़्फ़् म्म्म्म्स्स्स प्ल्ज्ज धिरेईईईए!


इतने में मुझे अपने लंड पर कुछ महसूस हुआ, उनका हाथ मेरे लंड को टटोल रहा था। मैंने अपनी जींस उतार दी और लंड उनके हाथ में दे दिया। फ़िर उन्होंने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और नीचे झुक कर मेरे लंड को चूमा और उसे मुँह में ले लिया। वो मेरे लंड को ऐसे चूस रही थी जैसे कोई छोटा बच्चा लॉलीपोप को चूसता है। मुझे बहुत ही मजा आ रहा था। काफी देर तक उन्होंने मेरा लंड चूसा!


फ़िर हम दोनों 69 की पोज़िशन में थे और एक दूसरे को चूस रहे थे। वो 2 बार झड़ चुकी थी।
फ़िर उसने मुझसे कहा- प्लीज़, अब बर्दाश्त नहीं होता फक्क मी वैरी हार्ड ! अपना लंड मेरी प्यासी चूत में घुसा दो।


और फिर मैंने कहा- भाभी ! उल्टी हो जाएँ।
उन्होंने मुझसे कहा- पीछे से चोदोगे मुझे?
मैंने कहा- अब कण्ट्रोल नहीं होता।


उनके मम्मे सोफे पर दब गए और मैं और अपना धैर्य खोते हुए भाभी की कमर पर चूमने लगा, उनकी कमर पर हाथ फेरा, उन्हें मज़ा आया। मैं उनकी कमर पर लेट गया और मेरा लंड उनकी योनि से छू गया। फ़िर सीधा करके उनके चुचूकों को चूसना शुरू किया और पैरों को ऊपर की ओर कर दिया और अपना लंड उनकी चूत में डाला।


क्या तंग योनि थी। फिर भी मैंने आसानी से अंदर किया, थोड़ा गया और उन्हें मज़ा आया। वो आह ऽऽ.. ओह ऽऽ.. औरऽऽ और ऽऽ जैसी आवाजें निकाल रही थी। मैंने और जोर लगाया और पूरा लंड अन्दर डाल दिया, वो चीखी लेकिन उन्होंने मुझे नहीं रोका। मैंने अब अंदर-बाहर, अंदर-बाहर करना शुरू किया।


मैंने उन्हें 20-25 मिनट चोदा, मेरा वीर्य निकल आया और भाभी का भी .. उफ्फ्फ्फ़ क्या दिन था । मैंने सोचा भी न था।


भाभी ने मुझे कहा- अब तुम चूचों के बीच में डालो !
अपना लंड मैंने चूचों के बीच में रख कर आगे-पीछे किया। मुझे बहुत मज़ा आया। मैंने उनके पूरे जिस्म पर चूमा-चाटी की और फिर कपड़े पहने।


फिर जब भी भैया जाते हैं तो हम दोनों खूब मस्ती करते ! मैंने उनको बहुत बार चोदा !
उसके बाद मैंने कोमल की कुँवारी चूत
भी मारी  ! वो  मैं अपनी नई कहानी में बताऊंगा।

Friday 1 February 2013

भाभी के साथ होली


 

मैंने पहली बार अपनी चाची की चुदाई की थी जिसके वजह से मुझे सेक्स की आदत ही पड़ गई यानि मैं पूरा चुदक्कड़ बन गया !

उसके बाद मैं जिसे भी देखता उसको चोदने के बारे में ही सोचता ! वैसे हमारा खानदान बड़ा होने की वजह से मेरी कई भाभियाँ थी और तीन सेक्सी चाचियाँ भी थी। वैसे सभी एक नंबर की माल थी और मैं सभी को चोदने के तरीके ढूंढ रहा था लेकिन कोई हाथ नहीं आ रही थी।


मैं अमरावती में जॉब करता था लेकिन कोई भी ऐसा त्यौहार नहीं रहा कि मैं गाँव में नहीं जाता था।


ऐसे ही मैं होली के त्यौहार के लिए गाँव गया हुआ था। रंगपंचमी की दिन सुबह उठा और मुँह-हाथ धोकर दोस्तों के साथ खेत में दारू पीने और रंग खेलने चले गया। दारू पीने के बाद धीरे धीरे नशा बढ़ने लगा और बातों बातों में दोस्तों ने चुदाई के किस्से सुनाने चालू किये जिससे मेरा लंड खड़ा होने लगा और मेरे दिमाग में चाची को चोदने की इच्छा हुई और वहाँ से उठ कर मैं वापस घर आ गया।


मैं चाची के यहाँ गया और चाची को चूमने लगा तो उसने बोला- अभी नहीं, घर पर सब लोग हैं, रात को जितनी मर्जी, उतना चोद लेना !और मुझे उसने बाहर जाने के लिए बोला।  


मैं बाहर तो निकल गया लेकिन मेरा लंड अभी भी तना हुआ था,बार-बार मुझे चोदने की इच्छा हो रही थी !


मैं चुपचाप ऐसे ही बैठा हुआ था कि मेरे दिमाग में भाभियों को रंग लगाने की बात आ गई और मैं उठ कर एक-एक करके सबको रंग लगाने निकला ! अभी तक मेरा लंड वैसे ही हिचकोले मार रहा था।


मैंने सोचा कि रंग लगाने के बहाने से भाभियों को छूने का मौका तो मिल ही जायेगा और मैंने एक-एक के घर में जाकर रंग लगाना चालू किया। उस समय हर किसी के घर में कोई न कोई मौजूद था जैसे किसी का पति तो किसी के सास-ससुर और यह देख के मेरा दिमाग और ज्यादा ख़राब हो रहा था क्योकि मेरे लंड को ठंडक नहीं मिल रही थी।


अब मैं अपने चचेरे भाई के यहाँ जा रहा था उसकी अभी तीन महीने पहले शादी हुई थी, उसकी बीवी यानि मेरी भाभी का नाम अरुणा था वो दिखने में थोड़ी सांवली थी मगर बदन को देखा तो किसी का भी लंड खड़ा हो जाये। उसका बदन 34-30-36 था, उसके चूचे तो दीवाना कर देते थे वैसे ही जब से उनकी शादी हुई थी तब से ही मैं उसको चोदने के लिए बेताब था।


उनके घर में उन दोनों के शिवाय कोई नहीं रहता था क्योंकि मेरे भाई के माता-पिता का देहांत हो चुका था। मैं अभी भी नशे में था लेकिन होश में था और यही सोच कर उसके घर जा रहा था आज मेरा भाई घर में न हो। मैं उनके घर के दरवाजे पर पहुँचा और सीधा अन्दर चले गया तब भाभी खाना बना रही थी। वो मुझे देखते ही समझ गई कि मैं उनको रंग लगाने के लिए आया हूँ।


भाभी बोली- अरे देवर जी, आप कब आये अमरावती से?
मैं बोला- कल शाम को आया भाभी ! अभी मैं आपको रंग लगाने आया हूँ।


वो बोली- मैं समझ गई थी कि आप होली खेलने के लिए आये हो लेकिन थोड़ा रुको, मुझे सब्जी का तड़का लगाने दो।


मैंने उनसे मेरे भाई के बारे पूछा तो वो बोली- आज कंपनी में काम होने की वजह से वो ड्यूटी पर गए हैं, शाम को 6 बजे आयेंगे।


वैसे ही मेरे दिमाग में ख्याल आया कि आज भाभी को तो चोदने का अच्छा मौका मिल गया है। देखते ही मेरा लंड फिर से तन गया और मेरे बरमुडे से बाहर निकलने लगा।


आज वैसे भी मैं बेफिक्र था क्योंकि अगर भाभी को बुरा लगा तो परिवार वालों को लगेगा कि दारू के नशे में रंग लगते वक़्त गलती से हाथ लग गया होगा।


उनके घर में दो कमरे थे, एक में मैं खड़ा था और दूसरे में वो खाना बना रही थी, उसी कमरे में उनका बेड भी था।


अब मैं उनके अन्दर के कमरे में चले गया और बेड पर बैठा उनके वक्ष को घूर रहा था।
क्या हसीन नजारा था, दो उभारों के बीच में पूरी खाई दिख रही थी। उसने लाल साड़ी और काला ब्लाऊज पहना था।


मैं धीरे धीरे अपने लंड को दबा रहा था, उतने में उनका ध्यान मेरी तरफ गया और मैंने फटाक से अपना हाथ अपने लंड से हटा लिया। उन्होंने ये सब देख लिया और अनदेखा करके सब्जी बनाने लगी।


वो मेरे से तीन साल से छोटी थी लेकिन रिश्ते में भाभी होने की वजह से मैं उनको आप आप कहता था। फिर 5 मिनट के बाद वो वहाँ से उठी बोली- अब आप रंग लगा लो।


मैं उनके पास गया और पीछे से दोनों हाथों से उनके चेहरे पर रंग लगाना चालू किया।
अभी मैं उनके शरीर से दूर ही था, धीरे से मैंने अपना लंड उनके गांड से चिपकाया और जोर जोर से उनको रंग लगाना चालू किया जिससे उसको लंड के धक्के समझ में नहीं आ रहे थे।
मेरा दिमाग दूर का सोच रहा था कि अब समय बर्बाद करने में मतलब नहीं और ऐसा मौका शायद मिले।


मैं अपना मुँह नीचे करके उनके गर्दन के पास लाया और अपने होठों से उसको चूमने लगा तो वो एकदम चकरा गई कि यह क्या हो रहा है।


वो बोलने लगी- देवर जी बस हो गया रंग लगाना, अब छोड़ो !
लेकिन मैं कहाँ रुकने वाला था, मैंने फिर से कस कर उनको पकड़ लिया और गर्दन और पीठ की चूमना चालू किया। साथ में पीछे से लंड भी गांड को ठोक रहा था !


अब मैंने उनकी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया जिससे उसका ब्लाउज पूरा खुला हो गया। वो ना-नुकुर करने लगी...प्लीज छोड़ो ना... कोई आ जायेगा...प्लीज...


मैं यह सुनते ही समझ गया कि भाभी को यह सब अच्छा लग रहा है लेकिन वो डर रही है।
मैंने उनकी बातों को अनसुना करके अपने दोनों हाथों से ब्लाऊज के ऊपर से स्तन दबाना शुरु किया।


वाह ! क्या सख्त चूचे थे.... बहुत अच्छा लग रहा था ! अभी तक मैंने सिर्फ अपने चाची के ही चूचे दबाये थे जो बहुत ही नर्म थे !


अब मैं जोर जोर से स्तन दबा रहा था। वैसे ही भाभी की आवाज तेज हो रही थी वो सिसकारियाँ मार रही थी उसकी धड़कन भी तेज हो गई थी...आ...आ...हु...हु...आह्ह्ह.. ह्ह्ह....


अब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि अब भाभी गरम हो गई है। मैंने उनका हाथ पीछे लेकर अपने लंड पर रख दिया अब वो मेरा लंड सहला रही थी और बीच-बीच में दबा भी रही थी।
और मैं दोनों हाथों से उसके स्तन दबा रहा था !


मैंने उनका ब्लाउज खोलना शुरु किया और खोलते ही उनकी काली ब्रा दिखने लगी, मैंने ब्रा के ऊपर से दबाना चालू रखा।


भाभी बोली- देवर जी, जो भी करना है कर लो लेकिन दरवाजा तो बंद करो !
और मैं उनको छोड़ कर दरवाजा बंद करने गया।


दरवाजा बंद करने के बाद मैंने उनकी पूरी साड़ी उतार दी और अपना बरमूडा भी उतार दिया। अब मेरे शरीर पर चड्डी और शर्ट के शिवाय कुछ नहीं था और उसके शरीर पर सिर्फ ब्रा, चड्डी और पेटीकोट ही था !


हम दोनों ने एक दूसरे को बाँहों में भर लिया और होठों को चूमना शुरु किया, साथ साथ में मैं उसकी गर्दन की भी पप्पी ले रहा था।


मुझे मालूम है कि औरत के गर्दन के पास चूमा तो वो जल्दी गर्म होती है ऐसा मुझे मेरी चाची ने बताया था।


मैंने अपने हाथों से उसके ब्रा के हुक भी खोल दिए और उसे निकाल कर बेड पर फेंक दिया ! ब्रा खोलते ही उसके बड़े बड़े चूचे मेरे सीने से चिपक गए। मैंने उसको थोड़ा सा दूर किया और हाथों से उनको दबाना चालू किया। उसकी निप्पल बहुत ही छोटी और गुलाबी रंग की थी !


उसने भी अपना एक हाथ मेरे चड्डी में डाल दिया और मेरे 6" के लंड को सहलाने लगी। थोड़ी देर मसलने के बाद मैंने उसकी एक एक करके दोनों चूचियों को मुंह से चुसना चालू किया, मैं जैसे जैसे चूसता वैसे वैसे वो मेरा लंड और जोरों से दबाती।


अब हम दोनों बिस्तर पर चले गए और 69 की अवस्था में हो गए। मैंने उनका पेटीकोट पूरा ऊपर कर लिया और उनके पैरों को चूमने लगा ! वो भी मेरे पैरों को चूमने लगी। पैर चूमते चूमते अब मैं उसकी चूत तक पहुँच गया, उस पर सिर्फ चड्डी ही थी। मैंने चड्डी के ऊपर से उसकी चूत सहलानी शुरु किया तो वो अपने पाँव खींचने लगी।


मैंने जबरदस्ती से उसके दोनों पावों को फैला कर उसके चूत को अपने मुँह से चूमना शुरु किया तो वो अपने हाथों से मुझे धकेलने लगी।


अब मैंने उसकी चड्डी को नीचे सरकाना शुरु किया और कुछ ही सेकंडों में उसकी चूत को पूरा खुला कर दिया।


क्या चूत थी भाभी की ! एक भी बाल नहीं था, पूरी चिकनी चूत थी !
उसी अवस्था में मैं उसके शरीर के ऊपर हो गया और अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटने की कोशिश करने लगा, चूत गीली हो गई थी !


वो भी मेरा लंड चड्डी से ही हिला रही थी, मैं जैसे जैसे उसकी चूत चाट रहा था, वैसे वैसे उसकी आवाज में बदल हो रहा था।


वो बोलने लगी- प्लीज... ऐसा मत करो... गुदगुदी हो रही है !
मैंने उसको बोला- भाभी आप भी मेरा लंड चूसो ना !
वो बोली- नहीं बाबा, मुझे यह सब गन्दा लगता है।


लेकिन मेरी विनती से उसने चड्डी से ही मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया।अब मैंने एक उंगली उसके चूत में डाल दी और अन्दर-बाहर करने लगा। उसकी चूत बड़ी कसी थी लेकिन गीली होने की वजह से उंगली आराम से जा रही थी। कुछ देर अन्दर-बाहर करने के बाद उसकी सिसकारियाँ बढ़ने लगी।


उसने मेरी चड्डी उतार दी और मेरा लंड देखते ही वो खुश हो गई, बोली- आपका लंड तो बहुत ही बड़ा है, आपके भाई तो इससे भी छोटा और पतला है !
उसने अपने पेटीकोट से मेरा लंड पौंछा और उसे चूमना शुरु किया।
धीरे धीरे उसकी इच्छा उसे चाटने की भी हुई लेकिन वो थोड़ा ही चाट पाई !


इधर मैं जोर-जोर से उंगली अन्दर बाहर कर रहा था ! अब उसको सहन नहीं हो रहा था तो वो बोली- अब जल्दी से इसे मेरी चूत में डाल दो नहीं तो अगर कोई घर पर आ गया तो मेरी चूत ऐसे ही प्यासी रह जाएगी !


मैंने भी वक़्त की नजाकत को समझा और उसे चोदने का मन बना लिया। शायद कोई आता तो मेरा भी लंड प्यासा का प्यासा ही रहता !


मुझे चाची के साथ सेक्स करते करते बहुत सारे आसन मालूम थे फिर भी मैंने भाभी को पूछा- आपको कौन से आसन में चुदवाना पसंद है?


तो वो बोली- आप जिसमें चोदोगे वो चलेगा बस अब चोदना चालू करो !
और मैंने उनको अपने ऊपर लेकर अपने लंड पर उसकी चूत को रखा और एक झटके के साथ उसे नीचे अपने लंड पर दबाया तो वो चिल्ला उठी- वोह्ह्ह्ह....वोह्ह्ह....बहुत दर्द हो रहा है ...
वो तड़फ रही थी- प्लीज निकालो बाहर ! नहीं तो मेरी चूत फट जाएगी।


लेकिन मैंने उसे पकड़ कर रखा था, अभी भी मेरा लंड उसकी चूत में था, कुछ सेकंड रुकने के बाद मैंने उसे अपने सीने पर झुका लिया और लंड को अन्दर-बाहर करने लगा। अब उसको थोड़ा-थोड़ा दर्द हो रहा था। लेकिन उसे आनन्द भी आ रहा था, साथ में उसके होठों को भी चूम रहा था। फिर धीरे धीरे मैंने स्पीड भी बढाई और जोर-जोर से चोदने लगा।


अब वो भी अपनी गांड हिलाने लगी और अन्दर-बाहर करने लगी। ऐसा हमने करीब 5 मिनट किया।


उसके बाद मैंने उसे घोड़ी बनाया और जोरदार धक्के के साथ अपना पूरा 6" का लंड उसकी चूत में डाल दिया।


वैसे ही वो चिल्ला उठी- अरे बाप रे ....मार डालोगे क्या?
अब मैंने धीरे धीरे अन्दर-बाहर करना शुरु किया, अपने दोनों हाथों से उसके स्तन दबाना भी चालू रखा। इतने में वो झड़ गई। अब मुझे भी लग रहा था कि मैं जल्दी झड़ जाऊँगा तो मैंने अपनी स्पीड बढ़ाई और तुरंत दो मिनट के बाद मैं भी झड़ गया और अपना पूरा पानी भाभी की चूत में छोड़ दिया।


अब भाभी के चेहरे पर ख़ुशी साफ झलक रही थी। हमने अपने अपने कपड़े पहने और दरवाजा खोल दिया।


मैंने भाभी को बताया- मैं दस दिनों की छुट्टियों पर आया हूँ !
उसने भी मुझे बताया की मेरे भाई की अगले 7 दिन नाईट ड्यूटी है !


हमने तय किया कि रोज रात को 11 से सुबह के 4 बजे तक यही रासलीलायें खेलेंगे और एक चुम्बन के साथ मैं वहाँ से निकल गया।


अगले 7 दिन मैं ऐसे ही भाभी को चोदता रहा रोज रात को हम 3-4 बार सेक्स करते रहे और १० दिन के बाद मैं फिर से अपने ड्यूटी पर चला गया। भाभी को चोदने की बात सिर्फ मेरी चाची को ही मालूम है।

Wednesday 30 January 2013

पुरानी क्लासमेट - अदिति



अदिति पुलिस की ट्रेनिंग पूरी करके अपनी बुआ के यहाँ आई हुई थी। यह शहर भोपाल से 30 किलोमीटर दूर था। अदिति ने भोपाल रेलवे स्टेशन से हैदराबाद जाने के लिए रात को गाड़ी पकड़नी थी। उसका फ़ुफ़ेरा भाई विशाल अदिति को लेकर बस स्टैन्ड आया हुआ था। इतने में विशाल का दोस्त सुनील अपनी सूमो से जाता हुआ दिखाई दिया। उसने उसे आवाज दे कर रोक लिया। उसने पूछा तो उसने बताया कि उसे भी भोपाल जाना था। विशाल ने बताया कि अदिति को भोपाल जाना है, उसे स्टेशन पर छोड़ देना। भला सुनील को क्या आपत्ति हो सकती थी।


रास्ते में सुनील ने अदिति को ध्यान से देखा तो उसे याद आ गया कि वो कॉलेज में उसके साथ पढ़ती थी। उसने अदिति को याद दिलाने की कोशिश की।


"सुनील जी, आप बिना मतलब के परेशान हो रहे हैं ... दोस्ती बढ़ाने का ये भी कोई तरीका है?""ओह सॉरी, मुझे लगा आप को याद आ जायेगा !"


"तो लाईन मारने का और कोई तरीका नहीं है आपके पास? वैसे मैं बता दूँ कि मैं पुलिस सब इन्स्पेक्टर हूँ ... और मुझसे डरने की आपको कोई जरूरत नहीं है।"सुनील हंस दिया, और गाड़ी चलाने मग्न हो गया।


"आपको शायद शिन्दे सर याद नहीं है जिन्होंने आपको क्लास से बाहर निकाल दिया था !"


अदिति ने उसे एक बार फिर देखा... और मुस्करा उठी..."तो जनाब ने मुझे याद दिला ही दिया ... "


उनकी बातों का दौर चल निकला। रास्ते भर अपने विद्यार्थी-जीवन को याद करके खूब हंसते रहे। भोपाल पहुंचने पर सुनील ने पता किया कि गाड़ी सात घण्टे देरी से चल रही है... यह जान कर अदिति परेशान हो गई कि इतना समय कैसे बितायेगी?


"मेरा घर यहां से पास में ही है, बस पांच मिनट की दूरी पर... आप वहाँ आराम कर लें, फिर खाना वगैरह भी खा लेंगे। देखो तीन तो वैसे ही बज जायेंगे।"


अदिति ने कहा कि घर वालों को मेरी वजह से परेशानी होगी... वो जैसे तैसे स्टेशन पर ही समय बिता लेगी। सुनील ने जोर दिया तो वो राजी हो गई। घर जाने से पहले उसने रास्ते से कुछ खाना ले लिया और घर पहुँच गये। सुनील ने ताला खोला और दोनों अन्दर आ गये।


"घर पर तो कोई नहीं है..."


"हाँ, वो सब तो गांव गये हुये है, तीन चार दिन बाद आयेंगे... खैर आप आराम करें।"सुनील अन्दर जाकर रम की बोतल ले आया और आराम से पीने बैठ गया।"क्या दारू पी रहे हो ... ?"


"हां यार... थोड़ा सा पी लूँ तो थकान दूर हो जायेगी ... तुम तो नहीं लेती होगी?""दोगे नहीं तो कैसे लूंगी भला ... यार तुम तो बौड़म हो ... तुम्हें तो शिष्टाचार भी नहीं आता है।"अदिति ने मुस्कराते हुये कहा।


सुनील बहुत देर से अदिति के बारे में ही सोच रहा था। उसका कसा हुआ बदन, उसकी टी-शर्ट में उभरे हुये उत्तेजक उभार ... पर वो पुलिस वाली थी, इसी वजह से उसकी गाण्ड भी फ़ट रही थी। 


उधर अदिति भी सुनील जैसे गबरू जवान को देख कर फ़िसली जा रही थी। अदिति को बस यही दारू वाला मौका मिला था ... सोचा कि एक घूंट पीकर उसकी गोदी में बैठ जाऊंगी और नशे का बहाना बना कर उससे चुद लूँगी। सुनील अन्दर से कोक में रम मिला कर ले आया।


"हम्म, स्वाद तो अच्छा है...!" वो पीते हुये भोजन भी करने लगी।"और लोगी...?"

"हाँ यार, मजा आ गया ... और मुझे नाम से बुला... अपन तो साथ के हैं ना !"सुनील ने पैग बना दिया और शराब ने कमाल दिखाना शुरू कर दिया। खाना समाप्त करके सुनील ने पूछा,"मजा आया अदिति, खाना मज़ेदार लगा?"


अदिति ने मस्त हो कर अपनी जुल्फ़े झटक कर कहा,"ओ येस, बहुत मस्त लगा !"अदिति का हाथ सुनील ने थाम लिया था, अब उसने अदिति की पीठ पर सहला कर कहा,"सच कुछ और भी चाहिए तो बोलो..."


"ओह नो सुनील, बस मस्त मजा आ रहा है।""अरे बताओ ना, मेरी मेहमान हो, खातिर करने का मौका अब ना जाने कब मिले !"'और क्या खिलाओगे?" अदिति ने अपनी नजरें तिरछी करके कहा। "जो आप कहें, कहिये क्या खायेंगी आप?" सुनील ने अदिति का हाथ दबा दिया।


अदिति के जिस्म में एक कसक सी अंगड़ाई ले रही थी, अचानक उसके मुँह से निकल पड़ा,"अभी तो फ़िलहाल, आपका ये खड़ा लण्ड..." उसका कुछ पुलिसिया अन्दाज था।


"यह तो कब से आपके स्वागत में तैयार खड़ा हुआ है, आपको सेल्यूट मार रहा है।"अदिति का नशा गहरा होता जा रहा था। उसकी चूत भी फ़ड़कने लगी थी। उसे तो एक जवान लण्ड मिलने वाला था।


"जरा मुआयना तो करा दे अपने लण्ड का, जरा साईज़ वाईज़ देखूँ तो..."सुनील ने तुरन्त अपना लौड़ा बाहर निकाल दिया। अच्छे साईज़ का लण्ड था..."ये हुई ना बात ... ले मेरी चूत में फ़ंसा कर देख, मादरचोद घुसता है कि नहीं।"उसके मुख में पुलिस वाली गाली निकलने लगी थी।


"तो जनाब अपनी चूत तो हाज़िर करो ... अभी ट्रायल दे देता हूँ..."


सुनील ने उसे एक झटके से अपनी बाहों में उसे उठा लिया और सामने बिस्तर पर पटक दिया। उसकी जींस और टॉप उतार दिया। कुछ ही देर में सुनील भी मादरजात नंगा खड़ा था।


"चल इसका जरा स्वाद तो चखा दे, आ जा ! दे मुँह में लौड़ा !"


सुनील ने अपना लण्ड उसके मुख में डाल दिया। सुनील ने भी अदिति की कोमल चूत देखी और उस पर झुक गया। अदिति सिहर उठी... सुनील की लपलपाती जीभ उसकी कभी गाण्ड चाट रही थी तो कभी चूत के खड्डे में घुसी जा रही थी। उसका दाना जरा बड़ा सा था, जीभ से उसे हिलाना आसान था। वो आनन्द के मारे अपनी चूत उछालने लगी थी।


"ओह... अब लण्ड खिलाओगे ... चूत को मस्ती से खिलाना कि उसे मजा आ जाये।""मां कसम, तुम पुलिस वालों को चोदने में बड़ा आयेगा... सुना है बड़ी टाईट चूत होती है।""उह्ह्ह, किस ख्याल में हो, पुलिस तो बदमाशों की मां चोद देती है ... चल रे तू मुझे चोद दे।"अदिति ने अपनी टांगें चौड़ा दी... उसकी चिकनी चूत पूरी खुल गई।


मेरा लाल सुपाड़ा और उसकी लाल चूत का मिलन कितना मोहक होगा, यह सोच कर ही सुनील तड़प उठा। वो अदिति के नीचे बैठ गया और लण्ड को हाथ में लेकर उसकी चूत से चिपका दिया।"अब खा भी लो जान, मुँह फ़ाड़ कर गप से खा जाओ।"


अदिति ने देखा सारी सेटिंग ठीक है तो अपनी कमर धीरे से उछाल कर लण्ड चूत में खा लिया और चीख सी उठी।


"हाय राम ... कितना मोटा है... पर मस्त है ... दे जोर से अब !"


सुनील ने अपना लण्ड जोर डाल कर उसे पूरा घुसा डाला। अदिति ने जोर से मस्ती में अपनी आंखें बन्द कर ली। उसके जबड़े उभर आये ... मुख खुला का खुला रह गया।"चोद डाल हरामजादे ... लगा जम कर ... फ़ाड़ डाल ! तेरी भेन को चोदूँ।""अरे ये पुलिस थाना नहीं है, सुनील का मस्त बिस्तर है।"


"मां चुदाई तेरे बिस्तर की, दे हरामी ... घुसेड़ ... और जोर से ... चोद डाल।"


अदिति मस्ती में पागल हुई जा रही थी। वो अपने असली पुलीसिया अन्दाज में आ चुकी थी। सुनील भी इसी आनन्द में डूबा हुआ था। उसका मोटा लण्ड अदिति को दूसरी दुनिया की सैर करवा रहा था। दोनों आपस में गुंथे हुये थे, अदिति की चूत की कस कर पिटाई हो रही थी। वो तो और जोर से अपनी चूत पिटवाना चाह रही थी। अदिति के दांत भिंचे हुए थे, चेहरा बिगड़ा हुआ था, आंखें बन्द थी, जबड़े बाहर निकले हुये थे ... सुनील के हाथ उसके कड़े स्तनों का मर्दन कर रहे थे।


"तेरी मां की फ़ुद्दी ... भोसड़ी वाले ... दे लौड़ा ... मार दे मेरी ... मादरचोद... दे ... और दे ... लगा जोर, फ़ाड़ दे मेरी, तेरी भेन को लण्ड मारूँ ...ईइह्ह्ह्ह्ह्... दे ... जोर से मार !"


सुनील इन सब बातों से बेखबर अन्यत्र कहीं स्वर्ग में विचरण कर रहा था, बस जोर जोर से उसकी चूत पर अपना लण्ड पटक रहा था।


अदिति का नशा आखिर चूत का पानी बन कर बह निकला। उसने एक गहरी सांस भरी और सुनील का लण्ड हाथ में ले कर मलने लगी।


"अरे नहीं अभी इसमें दम बाकी है...।""तो दम कहाँ निकालोगे ...?"


सुनील ने पीछे जाकर उसके मस्त पुटठों पर अपने हाथ फ़िरा दिये। अदिति ने उसे मुस्करा कर घूम कर देखा। सुनील ने अपनी कमर आगे करके अपना खड़ा लण्ड उसकी गाण्ड से चिपका दिया। उसके नितम्ब सहलाने लगा। उसकी मांसल जांघें उसे आकर्षित कर रही थी। अदिति उसी मुद्रा में झुकी हुई उसके लण्ड के स्पर्श का आनन्द ले रही थी। उसके चूतड़ों के खुले हुए पट लण्ड को छेद तक रगड़ने का मजा दे रहे थे।"इरादा क्या है मिस्टर?"


"बस एक बार तुम्हारी सलोनी मांसल गाण्ड बजा देता तो तमन्ना पूरी हो जाती।""मुझे जाने देने का विचार नहीं है क्या ? गाड़ी छूट जायेगी !"


"गाड़ी तो सुबह भी जाती है ना, पर ऐसा मौका मिले ना मिले फिर?"अदिति नीचे घुटनो के बल बैठ गई, लण्ड उसके सामने था।"तुमने मजबूर कर दिया जानू !"


"मैंने नहीं, मेरे इस लण्ड ने मुझे मजबूर कर दिया !" सुनील ने कहा।अदिति ने लण्ड को घूर कर कहा," क्यूँ लण्ड मियां, मेरी गाण्ड मारे बिना नहीं मानेंगे आप?"फिर स्वयं ही लौड़े को हिला कर ना कह दिया।


"तो जनाब लण्ड महाराज मेरी गाण्ड आप जरूर मारेंगे !" फिर उसे ऊपर नीचे हां की मुद्रा में हिला कर अपने मुख में ले लिया। कुछ देर चूसने के बाद अदिति ने क्रीम लेकर अपनी गाण्ड में भर ली, फिर वो हाथों के बल झुक कर घोड़ी बन गई। सुनील ने अपने लण्ड पर भी क्रीम लगा कर अदिति की गाण्ड पर लगा दिया। उसने अदिति का दुपटटा लिया और उसकी कमर पर बांध दिया। उसे पकड़ कर उसने अपने अपना लण्ड अदिति की गाण्ड में घुसेड़ दिया, घुड़सवार जैसे बन कर उसकी गाण्ड को पेलने लगा। फिर उसके हाथ भी कमर के पीछे लेकर बांध दिये और सटासट चोदने लगा।


"अभी तक तो हम पुलिस वाले चोरों के हाथ बांध कर मारा करते थे, तुमने तो मेरे हाथ बांध कर मेरी ही गाण्ड मार दी, भई मान गये तुम्हें !"


सुनील ने अदिति की गाण्ड जम कर मारी, फिर अन्त में उसे सीधी करके तबीयत से चोद भी दिया। अदिति का सारा कस-बल निकल चुका था।


गाण्ड मरा कर अदिति सो गई और सुनील उसी बिस्तर पर अदिति के साथ ही सो गया। सवेरे सुनील की नींद खुली तो देखा अदिति और वो खुद दोनो ही नंगे थे। सुनील ने अदिति को जगाया और सामने उठ कर खड़ा हो गया। उसका सोया हुआ लण्ड हाथी की सूंड की तरह लटक रहा था। सुपाड़ा जरूर चमक रहा था। अदिति ने एक भरपूर अंगड़ाई ली और अपने दोनों बोबे ठुमका दिए।


सुनील बोला,"जल्दी से तैयार हो जाओ !"पर अदिति की निगाहें सुनील के लण्ड पर ही थी। अदिति को देख कर सुनील का लण्ड फिर से फ़ूलने लगा और फिर से टनाटन हो गया। अदिति उठ कर सुनील के सामने आ गई।


"अब ये महाशय तो मुझे फिर से सलामी दे रहे हैं !""तो अदिति सलामी कबूल कर ही लो !"


अदिति एक बार घुटनों के बल बैठ गई और उसके झूमते लण्ड को एक थप्पड़ मार कर कहा,"मियां, तुम तो ऐसे भी खुश और वैसे भी खुश, चाहे अगाड़ी हो चाहे पिछाड़ी, तुमको को तो बस कोई छेद चाहिये, है ना ?

"फिर लण्ड को हिला कर बोली," क्या कहा ...हां, तो लो ये पहला छेद, " उसने अपना मुख खोल कर लण्ड को मुख के अन्दर डाल दिया।


"वाह... क्या रस है ..." फिर उठ कर सुनील से चिपक गई।

"अदिति, देखो मेरा मन फिर से डोल रहा है, चोद डालूंगा !""तो क्या हुआ, चोद डालो, गाड़ी तो शाम को भी जाती है।"


और दोनों खिलखिला कर हंस दिये। खिलखिलाहट ज्यादा देर नहीं चली, क्योंकि अदिति की चूत में सुनील का मोटा लण्ड एक बार फिर घुस चुका था। अब मात्र सिसकारियाँ ही गूंज रही थी।